मदमस्त मौला..किसी की ना सुनने वाला..खूबसूरत मगर प्यार का भार उठाए एक दम खामोश रहने
वाला..कभी भर गया दर्द से तो कभी रो दिया दुःख के बोझ से..सावन के महीने मे उड़ चला किसी की
तलाश मे..भीगने के डर से परे मदहोश है प्यार के खुमार मे..परिंदो की तरह पंख नहीं पर चाहत के
हज़ारो रंग साथ लिए...रंग है वफ़ा का खास साथ सदा,जो हर मौसम का रंगे-खास है...पूछिए ना,यह
कौन है.......यह तो दिल है बेचारा और भला कौन है....