समंदर से भी गहरी वो काली आंखे..इतनी नशीली कि शराब को भी मात दे गई वो बेपरवाह आंखे..
चाहा कि खो जाए उन की गहराई मे और कभी ना लौटे इस दुनियां की सच्चाई मे..सब कुछ भूल
कर जो डूबे उन बेशकीमती आँखों मे..वल्लाह,क्या क्या ना पाया उन आँखों मे हम ने..हज़ारो जज़्बात
जो टूटे थे..बेइंतिहा आंसू जो गम मे भीगे थे...दर्द-तकलीफों के ऐसे मंज़र जो चट्टानों को भी अपने दर्द से
बेहाल कर दे..मशक्कत की हम ने बहुत इन के हर दर्द को पीने की..सब निकाल बाहर हम ने,इन
आँखों को जीना सिखा दिया..आज यह हंसती है पुरजोर ख़ुशी के वज़ूद से और हम खूबसूरत आँखों
के दीवाने बने इन्ही को निहारते है...