बेहद खूबसूरत है आज हवा,हर कण मे जैसे जीवन हो भरा..ना कर किसी से कोई गिला..जीवन कब
किस का कितना रहा..जो भी पल मिले है उन को जी ले अपनी मर्ज़ी से,क्यों बेकार मे रहना दुःख की
छाया मे रोज़ सुबह-शाम मन रख के खुद से जुदा...एक खूबसरत सी लय बह रही है आज किसी बहती
नदिया की तरह...नीर भी भरा है इस मे संगीत की किसी मधुर धुन की तरह..गुनगुना ना संग मेरे,जीवन
कितना रहा तेरा और मेरा...किस को क्या पता...