Monday 3 August 2020

''सरगोशियां.इक प्रेम ग्रन्थ'' ..अलौकिक प्रेम गाथा..खूबसूरत प्यार की खूबसूरत परिभाषा लिखती..नज़र के पास,नज़र से बहुत दूर..जिस्म की हद से परे मगर रूह से जुड़ी हुई..बेबाक अपनी बात लिखने वाली यह सरगोशियां...कभी यू ही हंस दे,बच्चे की तरह..कभी जोर से खिलखिला दे किसी अल्हड़ प्यार की तरह तो कभी संजीदा हो जाए उदास मुहब्बत की तरह...कभी प्रिय की इंतज़ार देखती तो कभी प्रिय की आँखों मे डूबती-उतरती मदहोश सी सरगोशियां...कभी प्रियतम की बाहों मे अपने आंसू बहाने के लिए बेताब यह खामोश सी सरगोशियां...लिखती है और लिखती रहे गी यह सरगोशियां..पर बेवफाई के दाग से परे साफ़-पाक मुहब्बत को अनंत-काल तक सँभालने का जज़्बा लिए यह खूबसूरत मासूम सी सरगोशियां...जो लिखती है प्रेम मे कुर्बान होने के अल्फाज़,प्रेम को दुआ के ख़ज़ाने से संवारती सरगोशियां...और भी प्रेम के हज़ारो रूप-रंगो से सजी-धजी यह सरगोशियां...प्रेम पा लेने या हासिल कर लेने का नाम नहीं...राधा-कृष्ण के अटूट प्रेम को शब्दों मे बांधती यह मेरी लाड़ली सरगोशियां...आप सभी के दिलो को छूती मेरी यह सरगोशियां.....अपने तमाम दोस्तों को अपनी तरफ खींच लाने का गुर जानती है मेरी...''सरगोशियां''       ........शायरा ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...