मधुर मुस्कान लिए वो ईश्वर की इक कृति थी..प्रेम को इबादत मे बांधे वो मजबूती से खड़ी थी... ऐसा
नहीं कि वो बहुत सुखी थी..माटी की देह से सनी वो इक साधारण सी पहचान थी...मुट्ठी भर सिक्कों
का साथ लिए वो ईश्वर के बेहद बेहद करीब थी...किस ने उस को क्या कब और कितना दिया,इस बात
से वो बेखबर तो ना थी...पर हर इंसान के ज़मीर से उस की जान-पहचान थी...वो ना तो खुदा थी ना ही
मंदिर की कोई मूर्ति ना कोई ज्ञानी थी..वो तो ज़मीर को जान लेने वाली इक खूबसूरत इंसान थी...