Saturday 15 August 2020

 बेहद ख़ामोशी से उस को जो कहा..उतनी ही ख़ामोशी से उस ने भी सुना...लफ्ज़ बोले नहीं मगर इक 


दूजे ने सब कुछ समझ लिया...यह प्रेम की धारा है,जब भी बहती है बेइंतिहा ही बहती है...कितनी पाक 


है यह खुद ही बयां कर देती है...रिश्ते-पाक कहां मांगती है बस इक लय मे बंधी इक धुन मे सजी,उसी 


को समर्पित हो जाती है...इक ने कुछ भी कहा नहीं पर दूजे ने फिर भी सुना..प्रेम का यह रूप कितना 


उज्जवल है..यह किताबों मे कब था पढ़ा....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...