बेहद ख़ामोशी से उस को जो कहा..उतनी ही ख़ामोशी से उस ने भी सुना...लफ्ज़ बोले नहीं मगर इक
दूजे ने सब कुछ समझ लिया...यह प्रेम की धारा है,जब भी बहती है बेइंतिहा ही बहती है...कितनी पाक
है यह खुद ही बयां कर देती है...रिश्ते-पाक कहां मांगती है बस इक लय मे बंधी इक धुन मे सजी,उसी
को समर्पित हो जाती है...इक ने कुछ भी कहा नहीं पर दूजे ने फिर भी सुना..प्रेम का यह रूप कितना
उज्जवल है..यह किताबों मे कब था पढ़ा....