Thursday 13 August 2020

 नज़्म हो के ग़ज़ल हो या सुबह की उजली धूप की तरह गुनगुनाता सा कोई खूबसूरत गीत हो...जो भी 


हो कुदरत की बनी नायाब सी कलाकृति हो...मुस्कराहट जो खिले होठों पे,गुलाब की पंखुड़ियों की तरह 


महकता चमन हो...दर्द-तकलीफ हो या उजड़े हुए मन का आशियाना,सिर्फ तेरे आने की आहट दे जाती 


है सकून और हंसी का छलकता पैमाना...मुस्कराहट तेरी बेशकीमती है बहुत ,इस को लबों पे सजाए 


रखना...हम मिले गे तुम्हे मनभावन रूप लिए सो कुदरत की नायाब नियामत हमेशा बने रहना..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...