Monday 10 August 2020

 यह कलम सोए तो सोए कैसे कि तेरे दिल की स्याही इस कलम मे खत्म होती ही नहीं..लफ्ज़ो का इशारा 


रुकता है जब-जब,तेरे दिल की किताब उठा देती है लफ्ज़ो को अपनी तन्हाई के तहत...भरते है यह नैना 


जब भी नींद की आगोश मे,क्यों उठा देते है गीत तेरे आधी रात की बेला मे...यह कजरा जब तक तू ना 


बहा ले इन नैनों से,तेरी शरारत रुके गी कैसे...यह गज़रा खुल के ना बिख़र जाए जब तक ,तेरे अंदाज़ 


रुके गे कैसे...सर-आँखों पे तुझे जब खुद ही बिठाया है मैंने तो तेरी हर शरारत को नज़रअंदाज़ भी कैसे 


कर दे...


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...