Sunday 23 August 2020

 मुहब्बत का वो कौन सा सरूर था..वो प्यार का कौन सा रूप था..जीता रहा संग जिस के,एक दिन छोड़ 


आया उसी को जिस्म के बाजार मे...दौलत उस का शौक था,सिक्कों को गिनना मुहब्बत का फितूर था..


मुहब्बत सौदा भी है यह जान कर वो सदमे मे आ गई...बोली उस की लगती रही और वो हर रात बिकती 


रही..मुहब्बत उस की पाक थी,इबादत मे भी कोई दाग ना थी...आह उस के सीने से जो निकली,उस ने 


उस हैवान को ऐसी जगह पहुंचा दिया...आज ना उस के पास ना दौलत है ना कोई मुहब्बत का दावेदार 


है...इबादत का रुतबा तो देखिए वो आज किसी शहंशाह की मुमताज़-ऐ-खास है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...