राधे राधे ना पुकार बार बार मुझ को कान्हा..मैं हू तेरी कब से कान्हा..मैंने जन्म लिया तेरे लिए,मैंने रूप
धरा सुंदर सिर्फ तेरे लिए...तेरे लिए सजी संवरी,क्या रात तो क्या दिन...कान्हा,मेरी आवाज़ तुझ तक तब
भी पहुँचती है जब मैं तुझे याद करती हू..मेरे आंसू तुझे याद कर जब भी इन नैनो से गिरते है तो कान्हा,
यह तुझ से ख़ुशी का पैगाम ले कर मेरे पास लौटते है..दुनियां के लिए यह मेरा दिन है पर सुन ना मेरे
कान्हा,कैसे बताऊ इस ज़माने को कि यह राधा जन्मी भी तेरे लिए..जी भी तेरे लिए...अर्धग्नी से जयदा
तूने मुझ को मान दिया,रूह मे अपनी जोड़ मुझ को अपने नाम से पहले मेरा नाम दिया...तेरी रूह मे
बसती तेरी राधा,मैं तो कान्हा तेरी हो कर धन्य हो गई...