कुछ तो बोलिए ज़नाब..मौका-ए-दस्तूर पैमाने पे है...खामोशियाँ बोलने लगी है अब तो,इन दीवारों ने
भी दम को साधा है..आसमाँ बरसने से कोसों दूर है...तेरे बोलने की इंतज़ार मे हर परिंदा भी जैसे तेरे
लिए खामोश है..खिलने लगे है फूल तेरे लिए...ईद का चाँद भी देख ना,निकल आया है...बख्शीश दे दे
कर हम ने तो,हज़ारो दुआओं के तहत तुझे आदाब बजाया है...यह हुनर नहीं ज़नाब,यह तेरे लिए हमारा
प्यार उमड़ कर सामने आया है..