Friday 14 August 2020

 जब तल्क़ यह ज़िंदगी समझ आए गी तुम को,तब तक तो हम अपनी साँसे ही छोड़ जाए गे..तभी तो एक 


बार नहीं बार-बार ताकीद किया करते है..कुछ रास्ते दिखते नहीं उन को शिद्दत से संवारा जाता है..जो 


नदिया बहती जा रही है अपने सही रास्ते पे,उस को समझने के लिए उस के नीर का अर्थ समझा जाता 


है...हाथ से छूने की जरुरत क्या है,जरा रूह अपनी से देख..वो कभी तेज़ तो कभी धीमी चाल से आखिर 


अपने समंदर मे घुल जाती है..और यह समंदर इंतज़ार मे उसी की,सदियों से उस के घुलने की राह देखा 


करता है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...