जब तल्क़ यह ज़िंदगी समझ आए गी तुम को,तब तक तो हम अपनी साँसे ही छोड़ जाए गे..तभी तो एक
बार नहीं बार-बार ताकीद किया करते है..कुछ रास्ते दिखते नहीं उन को शिद्दत से संवारा जाता है..जो
नदिया बहती जा रही है अपने सही रास्ते पे,उस को समझने के लिए उस के नीर का अर्थ समझा जाता
है...हाथ से छूने की जरुरत क्या है,जरा रूह अपनी से देख..वो कभी तेज़ तो कभी धीमी चाल से आखिर
अपने समंदर मे घुल जाती है..और यह समंदर इंतज़ार मे उसी की,सदियों से उस के घुलने की राह देखा
करता है...