Sunday 16 August 2020

 सुनसान वीरान राहों पे निकल गए दूर बहुत ही दूर...कभी ना लौट आने के लिए..तभी एक पुकार सुनाई 


दी ''दूर मत जाना,कभी मत जाना''...मुड़ कर देखा तो कोई नज़र नहीं आया...भरम है,सोच फिर राहों 


पे कदम बढ़ा दिए..''कभी दूर मत जाना''..फिर वही पुकार..इस बार भी कोई ना था..खुद के दिल मे 


झाँका तो अक्स अपना ही नज़र आया..जो था मेरा और सिर्फ मेरा..जो था ख़ौफ़ज़दा मुझे खो देने का...


हम मुस्कुराए और लौट आए अपनी खूबसूरत बसती राहों  मे..कोई तो है जो हम को इतना चाहता है


बेशक अपना अक्स ही सही...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...