यह कौन सी किताब रही जिस को हम पढ़ ना सके...ज्ञानी कहते रहे बाबा हम को,इस के अल्फ़ाज़ मगर
हम समझ ना पाए..बाबा गलत नहीं हो सकते,यह दावा है...फिर क्यों,अपने ही बाबा की उम्मीदों पे उतने
खरे उतर नहीं पाए...गूढ़ ज्ञान के गहरे सागर मे जो डूबे तो बाबा फिर याद आए...कि जिस किताब के
पन्ने तेरे जीवन के मायनों मे नहीं,उस को ख़ामोशी से संभाल कर रख दे...बरसों बाद फिर इन को उठाना
जब इस मे रंग खुदा की रहमत का आ जाए..बाबा की हर बात को मानते आए है..यह किताब,यह पन्ने
रहमतो की छाँव मे रख छोड़े है...खोले गे बरसों बाद इन्हे जब रहमतो के रंग इन मे छा जाए गे ....