पाज़ेब तो मेरी बजी,उस की खनक तुझ को क्यों सुनी..इस की खनक से तार तेरे दिल के क्यों जगे..
छन-छन इस के नन्हे घुंगरू बजे,तेरे मन के द्वार क्यों खुलने लगे..हवाओं मे शोख़िया है बहुत,पर इस
के तमाम पैगाम तेरे शहर तक क्यों उड़े...इक नन्ही सी बदली गुजरी है मेरे आशियाने की छत को छू
कर..उस को जो देखा अकेला तो तार मेरे दिल के भी हिले..फिर आए कारे-कारे बदरा,पानी की
बौछारों से भरे...हम ने पूछा,अब क्यों आए हो..वो बोला तेरे शहर की हवा ने भेजा है हमें..