चाँद ने दी राह सूरज को तो सवेरा हो गया...सूरज ने खुद को छुपाया तो बादलों का बसेरा हो गया..यह
बादल खूब बरसे तो आसमां निख़र निख़र गया...शाम को देने रास्ता अब यह आसमां भी धीमे धीमे से
सरक जाए गा...फिर होगी रात तो चाँद फिर से कारे आसमां मे चमक जाए गा...सृष्टि का नियम कब
बदलता है..फिर इंसा को क्यों लगता है,यह गम की घोर घटा छटे गी नहीं...खुद को खुदा मानना छोड़ना
होगा तभी तो उस खुदा का बंदा हो पाए गा...देखना,यह समां फिर रंगीन हो जाए गा..