किस ने कहा,शब्दों को सहारो की जरुरत होती है..कौन बोला कि इन को लिखने के लिए किसी अपने
या गैरों की जरुरत होती है...सिर्फ इक कलम और थोड़ी सी स्याही,बस इतने की ही जरुरत होती है...
जज्बातों का इस कलम और स्याही से सदियों का नाता है...पन्नों पे चलती नहीं कि जज्बात खुद ही खुद
से निखर आते है..यह दुनियां है साहिब,बहुत कुछ सिखा देती है..मारती है जब ठोकर तो अक्ल सिखा
देती है...देती है धोखा तो इसी स्याही को और गहरा लिखना सिखा देती है..