भीगे है तुझ संग इस सावन की रिमझिम मे तो क्यों ना आसमां मे उड़ने को यह मन ना करे...तन भी
भीगा है और यह मन भी महका है,क्यों ना दुनियां से दूर बहुत ही दूर निकल जाए...तेरे चेहरे पे बरखा
की यह नन्ही बूंदे और माथे पे यह भीगे बरखा-अल्फ़ाज़..बोल दे ना जो दिल मे है,ना जाने फिर कब
होगी यह तूफानी बरसात...मुहब्बत क्यों आज खामोश रहे,ज़ज्बात क्यों दिल मे ही कैद रहे..तुझे काम
करने से फुरसत नहीं और हम को कुछ काम करने का मन ही नहीं...