Monday, 17 August 2020

 भीगे है तुझ संग इस सावन की रिमझिम मे तो क्यों ना आसमां मे उड़ने को यह मन ना करे...तन भी 


भीगा है और यह मन भी महका है,क्यों ना दुनियां से दूर बहुत ही दूर निकल जाए...तेरे चेहरे पे बरखा 


की यह नन्ही बूंदे और माथे पे यह भीगे बरखा-अल्फ़ाज़..बोल दे ना जो दिल मे है,ना जाने फिर कब 


होगी यह तूफानी बरसात...मुहब्बत क्यों आज खामोश रहे,ज़ज्बात क्यों दिल मे ही कैद रहे..तुझे काम 


करने से फुरसत नहीं और हम को कुछ काम करने का मन ही नहीं...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...