कुछ नहीं कहा बस खामोश रह गए..दर्द के दामन से जो उलझे तो ग़मगीन हो गए..कृष्ण के जीवन
को जो निहारा तो हैरान रह गए..अपने कष्टों को मामूली सोच आंसू पोछ लिए..वो कृष्ण जो अभी जन्मे
भी ना थे,उन को खत्म करने की साज़िश अपनों ने ऐसी रची कि हम यह भूल गए कि दुःखों ने हम पे
दस्तक भी दी है...जब कष्टों का दौर कृष्ण ने झेला तो हम इंसान क्यों रो देते है..बार-बार अपने उसी
कृष्ण को याद करते है,जिस का जिक्र हम अपने पन्नो पे करते रहते है...