छू ले तुम्हे,मगर किस अधिकार से...यह बोल कर वो आसमां के धुंधलके मे ग़ुम हो गई...वो परी थी
उसी आसमां की और उसी आसमां मे फ़ना हो गई...दे कर उसे खुशियां सभी,अपनी झोली मे भरी
तमाम हसरतों की राख़ और खाक सभी...आसमां सारा उसी का ही तो था...वो बादल वो सितारे,सब
अमानत उसी के ही तो थे...वो नहीं बनी थी इस दुनियां के लिए..वो कुदरत की वो कलाकृति थी,वो सिर्फ
बनी थी आसमां मे उड़ने के लिए...