ताकत तो इतनी है आज भी उस हुस्ने-पाक मे...झुका दे गा उस इश्क को जो चल रहा है गरूर के किसी
खवाब मे...आज़माइश कहां करते है यह हुस्न वाले...भरे है खुदा की रहमतों से...यह इश्क वाले इन को
कहां पहचाने...चेहरा-दीदारे खास नहीं होता...खास तो होता है वो दिल,जो उस खुदा के दरबार से रोज़
रौशन होता है...इश्क इस दिल की ताकत से बहुत अनजान है...उस को उस खुदा की ताकत की अभी
भी कहां पहचान है..हुस्न बहता है साफ़ झरने की तरह..इश्क तो छोटी नदियों के पानी मे डुबकी मारता
रहता है..साफ़ झरना साफ़ पानी,यही है हुस्न की पाक कहानी...