क्यों बेहद से भी बेहद खूबसूरत है यह सुबह..क्या कान्हा तेरे आने की ख़ुशी से यह आसमां-धरती का
रूप,पूरे सलीके से जैसे निखर आया है...तेरे आने की ख़ुशी,तेरे नन्हे रूप की यह अनोखी छवि..कहर
के इस दौर मे दे रही बेइंतिहा ख़ुशी...करिश्मे दिखाने वाले मेरे कान्हा सुन ना,इस कहर को हटा दे ना..
अपनी राधे की बात तुम ने कब टाली है..कलयुग है तो क्या हुआ तेरी राधे तो आज भी निराली है..प्रेम
का परिपूर्ण रूप लिए वो आज भी तेरे ही रंग मे रंगी,तेरी भोली अल्हड़ बाला और राधे है...