Thursday 27 August 2020

 आसमां तक उड़ान भरनी है मुझ को...सपना यही तो देखा है..इन शब्दों को सीढ़ी अपनी बना,सब 


का मन मोह लेना है...भले इल्ज़ाम लगे हज़ारो पर मेरी कलम को लिखते रहना है..चुप हो जाऊ..क्यों,


क्या इसलिए कि प्रेम पे लिखना किसी गुनाह का रेला है..प्रेम तो हर प्राणी मे बसता है..प्रेम तो जीव और 


जंतुओं मे भी बसता है...लोगो के दिमाग मे क्या चलता है...इस से मुझ को क्या लेना और क्या देना है...


मंज़िल मेरी बहुत पास है,यह मेरा मन भी कहता है...कल को जब मैं ना रहू गी तो इन पन्नो को,इन 


शब्दों को कितनी दुनियां रोज़ पढ़े गी...आसमां से देखू गी सब कुछ,अपनी ही सरगोशियां को नमन 


करू गी...साथ मेरे नाम के तब होगी यह सारी दुनियां ''सरगोशियां''मेरी राज करे गी..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...