जिस तरफ देखे इंद्रधनुष की तरह, फूल बिखरे है हर तरफ ही हर तरफ...यह सातों राहें है फूलों की
या इन के नसीब का इक खेला...खूबसूरती तो सभी मे देखी मगर नसीब सब का अलग अलग देखा...
कोई ईश्वर की पूजा को समर्पित था..कोई किसी के प्यार को मिलने वाला था..कोई बेखौफ मिटने को
था तैयार किसी की अर्थी पे...कोई मंदिर की सीढ़ियों पे यू ही बिखरा था...कोई पूरा दिन इस इंतज़ार
मे रहा कि किसी के गुलदस्ते की शोभा बनू...किसी को तो अपनी किस्मत पे भरोसा ही ना था..हां.एक
ऐसा भी रहा जो हर फैसले के लिए उसी पे निर्भर था...हम ने उसी को गले से लगाया,वो भी हमारी
तरह उसी की रहमत पर जो निर्भर था...