यह सुबह बिलकुल वैसी ही है,जैसी बरसो पहले थी..वही रिमझिम वही हलकी बौछारें,फर्क इतना है
अब यह सुबह कहर के आंचल तले है...वो मासूम ख़ुशी तब मेरे पास थी..पर अब वो मासूम ख़ुशी मुझ
से दूर है...अब कोई ज़िद भी नहीं किसी ख़ुशी के नज़दीक हो जाए..तू है ना अब भी साथ मेरे तो क्यों
उदास रह जाए..यह ज़िंदगी है मेरे यारा,आज ख़ुशी का आंचल पास है मेरे..कल होगा किसी और की
दुनियां के तले..फिर क्यों कहे कि ज़िंदगी तूने कुछ नहीं दिया..जितना हम को दिया,उतना कितनो को
मिला...