क्यों ना आज से हम तुम अज़नबी बन जाए...एक ही धारा के दो अलग किनारे बन जाए..याद रहे,यह
सफर अज़नबी बनने का है..इक दूजे से जुदा होने का नहीं..मैं रहू गी तेरी वही पावन नदिया,जिस को
सिर्फ तेरे ही किनारे थमना है..बेवफा ना मुझ को होना है और ना तुझे कही और जाना है...यह इम्तिहान
होगा तेरे-मेरे अनंत-काल के प्रेम का..अज़नबी बन कर फिर मुझे मिलना प्रेम के उसी पुराने रूप मे..
राधा भी मैं, धारा भी मैं..कृष्णा भी तुम और मेरे श्याम भी तुम..चल आज से अज़नबी हो गए मैं और तुम.