Thursday 6 August 2020

आंख का यह अश्क, बता तो तेरी रज़ा क्या है...यह तोहफा है वफ़ा का या ज़ज्बातो का नायाब सा 

ताजमहल है...गर वफ़ा पाक है तो बहने दे इस को...किसी रोज़ यही अश्क़ बने गे ताजमहल वफाए-

मुहब्बत के सिलसिलेवार के...आखिरी सांस तक वफ़ा का दामन थामे रखना कि ताजमहल मुहब्बत की  

झूठी वफ़ा के किरदारों पे खड़े नहीं होते..यह ताजमहल भी रोज़ बना नहीं करते,इस जहां मे मुमताज़ 

के शहंशाह और शहंशाह की मुमताज़ रोज़ पैदा भी नहीं हुआ करते...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...