Wednesday, 26 August 2020

 एक आवाज़..तीन स्तम्भ..इसी से बंधा यह जीवन है...यह नहीं रहता तो जीवन भी नहीं रहता...तब कोई 


साथ ही नहीं रहता...ज़माने की गर्दिशे और जीवन को जीने की चाह...कभी ग़ुरबत तो कभी बेपनाह 


दौलत के निशाँ...कभी कुछ पाने की ख़ुशी तो कभी कुछ खो देने का गम..सब कुछ मिला मगर फिर 


भी गम ही गम...''आवाज़ जो ज़मीर है अपनी..स्तम्भ,एक दिल,एक दिमाग और तीजा देह का मेला''...


यह गायब तो सब कुछ छूटा...फिर भी जीवन है खुशियों का मिला-जुला मेला... 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...