Monday 10 August 2020

 वो खामो-ख़याली थी तेरी या कोई बेवजह की उदासी ...तड़प के यू बिखर जाना,यह कोई अदा थी या 


किसी दर्द से बेहाल हो जाना..पांव के अंगूठे से जमीं को कुरेदना,इस को तेरा बचपना कहे या अल्हड़ 


प्रेम का जनून कह दे...बारिश मे खुद भीगना और छाते से मुझे ढांप देना,क्या इसे तेरा मुकम्मल इज़हार 


मान ले...कितनी भूलभुलैया है तेरे इकरारे-प्यार मे..कहना कुछ भी नहीं मगर इशारों की भाषा मे दिल 


अपना लुटा देना..तेरा भोलापन ही है तेरी खास अदा,रंजिशे-प्यार की क़बूल है हम को ऐ जाने-वफ़ा...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...