Friday 14 August 2020

 बरसते सावन की यह तेज़ बौछारें क्यों दिल को धड़काती है...डर जाते है बादलों की गड़गड़ाहट से 


और कांप जाते है...बादलों का शोर और बरसते सावन का खौफ, खुद मे सिमटने पे मजबूर कर देता 


है...एक मीठी सी याद दहक रही है दिल के मासूम से कोने मे...तेज़ बौछारों का कम होना और फिर 


बादलों का भी खामोश हो जाना..खिड़की से देखा तो चाँद निकल आया है..बेसब्री से ढूंढ रहा है अपनी 


चांदनी को,बादलों के खौफ से परे इन का प्यार शबाब पे आया है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...