काले घनेरे बादल जम के बरसे..इतनी गड़गड़ाहट के तले यह बेइंतिहा बरसे...इन के बरसने की सीमा
यू देखी जैसे कोई दुल्हन बाबुल के घर से विदा होते बरसे...बरस के थमे तो बिखेरा जादू ऐसा जैसे वही
दुल्हन पिया संग उस के देस चल दे...इंद्रधनुष आसमां मे निखर-निखर आया..क्यों लगा जैसे प्रियतमा
ने अपने पिया को जोरों से पुकारा...यह काले बादल जब भी जम के बरसते है,चुरा लेते है दिल किसी का
तो किसी को बेइंतिहा खुशियां देते है...