ना जाने कब से, वो उस के नाम की चुनरी ओढ़े..ना जाने कितनी सदियों से उसी का नाम खुद से जोड़े
वो इस धरा पे ज़िंदा है ..मौसम बदले..तीज त्योहार के मायने भी बदले...बारिश बरसी,पतझड़ आई..
मगर वो उस का नाम साथ लिए हर रोज़ जीती आई...खबर थी उस को वो उस को कभी ना मिल पाए
गा..सदियों का यह इंतज़ार खत्म हो ही ना पाए गा...कभी टपका उस की आंख से आंसू तो कभी जी
भी घबराया...पर उस को फिर भी धरा पे ज़िंदा रहना है कि उसी के साथ मुक्ति पाना उस का धर्म
और सपना है ...