Monday 17 August 2020

 सड़क की इन गलियों मे अब फ़रिश्ते नहीं आते...अब सुबह की धूप मे परिंदे चहकने भी नहीं आते..


फूल खिलते तो है मगर उन की खुशबू मे वो अंदाज़ नज़र नहीं आते...कलियां खिलने से पहले रौंद 


दी जाती है..वो बचपन वाले मासूम चेहरे अब सिर्फ दहशत मे ही नज़र आते है...यह कौन सी दुनियां 


है जहां इंसानो का असली चेहरा नज़र ही नहीं आता..रूप बेशक सलोने दिखे पर भीतर का शैतान अब 


छुपा कर रखा जाता है..सड़क की इन गलियों मे अब कोई कोई सच्चा इंसान नज़र आता है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...