Sunday, 30 August 2020

 रेशमी सा दुपट्टा उस का..लहरा दिया धीमे से अपने हमदम की तरफ...खुशबू के ढेरे थे इतने कि उन 


की तपिश से अरमां सुलग गए जैसे...कमसिन और अल्हड़ बाला मगर चाल लिए मदहोशी वाला..वो 


हमदम था उस का और दीवाना भी भोला...उस की वो झरनो सी हंसी,उस की वो मासूम ख़ुशी...जो 


सिर्फ थी इतनी कि वो संग-साथ रहे उस के,थाम के ऊँगली उस की..सहज थी वो,मासूम थी वो..दुनियां 


के छल-कपट से परे इक नन्ही सी महारानी थी वो...

 छू ले तुम्हे,मगर किस अधिकार से...यह बोल कर वो आसमां के धुंधलके मे ग़ुम हो गई...वो परी थी 


उसी आसमां की और उसी आसमां मे फ़ना हो गई...दे कर उसे खुशियां सभी,अपनी झोली मे भरी 


तमाम हसरतों  की राख़ और खाक सभी...आसमां सारा उसी का ही तो था...वो बादल वो सितारे,सब 


अमानत उसी के ही तो थे...वो नहीं बनी थी इस दुनियां के लिए..वो कुदरत की वो कलाकृति थी,वो सिर्फ 


बनी थी आसमां मे उड़ने के लिए...

 यह कौन सी किताब रही जिस को हम पढ़ ना सके...ज्ञानी कहते रहे बाबा हम को,इस के अल्फ़ाज़ मगर 


हम समझ ना पाए..बाबा गलत नहीं हो सकते,यह दावा है...फिर क्यों,अपने ही बाबा की उम्मीदों पे उतने 


खरे उतर नहीं पाए...गूढ़ ज्ञान के गहरे सागर मे जो डूबे तो बाबा फिर याद आए...कि जिस किताब के 


पन्ने तेरे जीवन के मायनों मे नहीं,उस को ख़ामोशी से संभाल कर रख दे...बरसों बाद फिर इन को उठाना 


जब इस मे रंग खुदा की रहमत का आ जाए..बाबा की हर बात को मानते आए है..यह किताब,यह पन्ने 


रहमतो की छाँव मे रख छोड़े है...खोले गे बरसों बाद इन्हे जब रहमतो के रंग इन मे छा जाए गे ....


 पैजनियाँ जब भी निष्पाप हो गई..सारे जहां को साफ़-पाक कर गई...बेशक तब वो कही भी बजती रही..


चाहे वो बाज़ार के उस बदनाम शहर मे बजी या फिर साजन के आंगन मे बजी...आँखों मे शर्म का पहरा 


लिए वो अपनी हर धुन से यह संसार महकाती रही...बाज़ार था तो क्या हुआ,वो खुद मे कही से भी दाग़दार 


ना थी...खुले आसमां तले आई तो पैजनिया का एक एक घुंगरू सभी के रास्ते छोड़ती चली गई...रहमतों  


का असर सभी पे पढ़े,इस नेक विचार को साथ लिए वो हर मोड़ पे सन्देश अपना देती रही...

 वो रंगे-जमाल था या रंगे-कमाल था...मगर हकीकत से परे वो बेवफाई का इक निशान था...आसमान 


मे छाई धुंध की तरह बिगड़ा कोई नवाब था...हसरतों का कोई जनाजा ना निकले,इस से बेखबर वो 


शाम का कोई हिजाब था...कागज़ कलम दवात कहां,पन्नो के शहर का कोई पुरानी सलतनियत लिए 


इक उजड़ा हुआ नाम था...सदियों से खड़े इक पेड़ की तरह वो धूप-छाँव का कोई पहरेदार था...वो 


क्या कोई रंगे-जमाल था या कोई बिगड़ा नवाब था....

Thursday, 27 August 2020

 जिस तरफ देखे इंद्रधनुष की तरह, फूल बिखरे है हर तरफ ही हर तरफ...यह सातों राहें है फूलों की 


या इन के नसीब का इक खेला...खूबसूरती तो सभी मे देखी मगर नसीब सब का अलग अलग देखा...


कोई ईश्वर की पूजा को समर्पित था..कोई किसी के प्यार को मिलने वाला था..कोई बेखौफ मिटने को 


था तैयार किसी की अर्थी पे...कोई मंदिर की सीढ़ियों पे यू ही बिखरा था...कोई पूरा दिन इस इंतज़ार 


मे रहा कि किसी के गुलदस्ते की शोभा बनू...किसी को तो अपनी किस्मत पे भरोसा ही ना था..हां.एक 


ऐसा भी रहा जो हर फैसले के लिए उसी पे निर्भर था...हम ने उसी को गले से लगाया,वो भी हमारी 


तरह उसी की रहमत पर जो निर्भर था...

 आसमां तक उड़ान भरनी है मुझ को...सपना यही तो देखा है..इन शब्दों को सीढ़ी अपनी बना,सब 


का मन मोह लेना है...भले इल्ज़ाम लगे हज़ारो पर मेरी कलम को लिखते रहना है..चुप हो जाऊ..क्यों,


क्या इसलिए कि प्रेम पे लिखना किसी गुनाह का रेला है..प्रेम तो हर प्राणी मे बसता है..प्रेम तो जीव और 


जंतुओं मे भी बसता है...लोगो के दिमाग मे क्या चलता है...इस से मुझ को क्या लेना और क्या देना है...


मंज़िल मेरी बहुत पास है,यह मेरा मन भी कहता है...कल को जब मैं ना रहू गी तो इन पन्नो को,इन 


शब्दों को कितनी दुनियां रोज़ पढ़े गी...आसमां से देखू गी सब कुछ,अपनी ही सरगोशियां को नमन 


करू गी...साथ मेरे नाम के तब होगी यह सारी दुनियां ''सरगोशियां''मेरी राज करे गी..

Wednesday, 26 August 2020

 राधे राधे ना पुकार बार बार मुझ को कान्हा..मैं हू तेरी कब से कान्हा..मैंने जन्म लिया तेरे लिए,मैंने रूप 


धरा सुंदर सिर्फ तेरे लिए...तेरे लिए सजी संवरी,क्या रात तो क्या दिन...कान्हा,मेरी आवाज़ तुझ तक तब 


भी पहुँचती है जब मैं तुझे याद करती हू..मेरे आंसू तुझे याद कर जब भी इन नैनो से गिरते है तो कान्हा,


यह तुझ से ख़ुशी का पैगाम ले कर मेरे पास लौटते है..दुनियां के लिए यह मेरा दिन है पर सुन ना मेरे 


कान्हा,कैसे बताऊ इस ज़माने को कि यह राधा जन्मी भी तेरे लिए..जी भी तेरे लिए...अर्धग्नी से जयदा 


तूने मुझ को मान दिया,रूह मे अपनी जोड़ मुझ को अपने नाम से पहले मेरा नाम दिया...तेरी रूह मे 


बसती तेरी राधा,मैं तो कान्हा तेरी हो कर धन्य हो गई...

 ना जाने कब से, वो उस के नाम की चुनरी ओढ़े..ना जाने कितनी सदियों से उसी का नाम खुद से जोड़े 


वो इस धरा पे ज़िंदा है ..मौसम बदले..तीज त्योहार के मायने भी बदले...बारिश बरसी,पतझड़ आई..


मगर वो उस का नाम साथ लिए हर रोज़ जीती आई...खबर थी उस को वो उस को कभी ना मिल पाए 


गा..सदियों का यह इंतज़ार खत्म हो ही ना पाए गा...कभी टपका उस की आंख से आंसू तो कभी जी 


भी घबराया...पर उस को फिर भी धरा पे ज़िंदा रहना है  कि उसी के साथ मुक्ति पाना उस का धर्म 


और सपना है ...

 एक आवाज़..तीन स्तम्भ..इसी से बंधा यह जीवन है...यह नहीं रहता तो जीवन भी नहीं रहता...तब कोई 


साथ ही नहीं रहता...ज़माने की गर्दिशे और जीवन को जीने की चाह...कभी ग़ुरबत तो कभी बेपनाह 


दौलत के निशाँ...कभी कुछ पाने की ख़ुशी तो कभी कुछ खो देने का गम..सब कुछ मिला मगर फिर 


भी गम ही गम...''आवाज़ जो ज़मीर है अपनी..स्तम्भ,एक दिल,एक दिमाग और तीजा देह का मेला''...


यह गायब तो सब कुछ छूटा...फिर भी जीवन है खुशियों का मिला-जुला मेला... 

Tuesday, 25 August 2020

 घुँगरू की दास्तां तो सुनिए...किसी के पांव मे बंधे तो नृत्य की बुलंदी पे ले गए...किसी और के पांव मे 


बंधे तो किसी ऐसी ताल पे थिरक गए..जहां इस के मोल ही बदल गए...वो घुँगरू बेवजह किसी की रातों 


को सजाने के लिए मजबूर हो गए...तक़दीर के खेल तो देखिए ना..कोई पंहुचा इस के साथ आसमां की 


बुलंदी पे तो कोई बाज़ारू हो कर दुनियां मे बदनाम हो गए...क्या कहे इस समाज को,किस ने आज़ाद 


किया इन को इन रातों से बाहर आने के लिए..यह घुँगरू तो बदनाम हो गए वहां,जहां इन के मोल कौड़ी 


के भाव बिक गए...

 ताकत तो इतनी है आज भी उस हुस्ने-पाक मे...झुका दे गा उस इश्क को जो चल रहा है गरूर के किसी 


खवाब मे...आज़माइश कहां करते है यह हुस्न वाले...भरे है खुदा की रहमतों से...यह इश्क वाले इन को 


कहां पहचाने...चेहरा-दीदारे खास नहीं होता...खास तो होता है वो दिल,जो उस खुदा के दरबार से रोज़ 


रौशन होता है...इश्क इस दिल की ताकत से बहुत अनजान है...उस को उस खुदा की ताकत की अभी 


भी कहां पहचान है..हुस्न बहता है साफ़ झरने की तरह..इश्क तो छोटी नदियों के पानी मे डुबकी मारता 


रहता है..साफ़ झरना साफ़ पानी,यही है हुस्न की पाक कहानी...

Monday, 24 August 2020

 प्यार की यह खूबसूरत चादर फैली है दूर तक..कौन किस मे घुल गया कौन किस से मिल गया...किस 


को खबर है...देख आकाश मोर नाच उठा..अपने साथी संग बस बहक गया...भूल गया अपने पैरों की 


वो खलिश...प्यार कहा कब खूबसूरती का मोहताज़ होता है...वो जब जब प्यार मे होता है ,तब तब  


कमाल होता है...सूरत का प्यार से क्या वास्ता..सीरत ही तो प्यार का गहना है..राधा बेइंतिहा गोरी 


और कृष्ण कारे-कारे...फिर भी सादिया उन के प्यार को आज भी ज़िंदा रखे है...जिस ने पावन प्रेम 


का अर्थ जान लिया वो सदियों तक के लिए पाक हो गया...

 यह नाज़ुक सी मुहब्बत और मौसम का कहर...फूल ही फूल बिखरे है चारो तरफ...सावन भी तो 


सावन है,ज़िंदगी की तरह कभी खूबसूरत है तो कभी बरसता तूफानी है...हम तो महक महक गए 


कि इस सावन को फिर भी तो आना है...जो हज़ारो जीवन महका दे वो सावन ही तो है...क्या हुआ जो 


कभी खुल के बरस गया तो कभी थम सा गया...मगर फूल हज़ारो बागों मे खिला तो गया....

 तेरे लिखे खतों से मुझे आज भी गुलाबों की महक आती है...सुना है मैंने,लोग अपने लहू से ख़त लिखा 


करते है...शायद वो प्यार किया ही नहीं करते,सिर्फ प्यार का दिखावा करते है...प्यार मे दिखावा कैसा.. 


प्यार तो इक बहती नदिया की धारा है जो बस बहता है तो बहता जाता है...कौन नदी की धारा को रोक 


पाया है...शायद तेरे खतो से खुशबू इसलिए आती है,कि तूने मेरा जीवन गुलाबों की तरह महकाया है...

 उम्र का अल्हड़ सा दौर और मुहब्बत ने लिया एक नया ही रूप...वो बांका मुस्कुराता,खुद भी था इक 


अल्हड़ सा मासूम दौर... बातो का सिलसिला था इतना मशगूल,बेखबर थे दोनों दिन था कहा और रात


थी कितनी दूर...छुआ किसी ने किसी को नहीं पर मुहब्बत हो गई आसमां के छोर तक मशहूर...उस 


की मासूम हंसी पे वो उस के कदमों मे झुक गया...माँगा उम्र भर का साथ मगर सिलसिला तो तभी से 


सदियों का हो गया...उस ने उस को अपना शिव कहा और वो अपनी गौरी मे गुम हो गया...

 सरगोशियां....जो प्रेम को प्रेम से लिख दे..

सरगोशियां....जो मुहब्बत का दावा कर दे...

सरगोशियां...प्यार को जो सुरों मे ढाल दे...

सरगोशियां...जो ज़िंदगी की हकीकत बेबाक लिख दे..

सरगोशियां...जो रिश्तों का सच भी लिख दे...

सरगोशियां...जो रिश्तों का दर्द बयां कर दे...

सरगोशियां...रिश्तों की कड़वाहट भी लिख दे....

सरगोशियां....जो कभी खुल के रो दे...

सरगोशियां...जो बेवजह भी मुस्कुरा दे...

सरगोशियां.....जो खिलखिला दे बेहद मासूमियत से....

सरगोशियां....जो फकीरी पे खुल के लिख दे....

सरगोशियां....जो दौलत की बुलंदियों को छू ले...

सरगोशियां....जो कभी अल्हड़ बाला बन जाए....

सरगोशियां....जो राधा के परिशुद्ध प्रेम से संवर जाए...

सरगोशियां...जो कृष्णा को उलाहना भी दे दे....

सरगोशियां....जो अनंत प्रेम को साबित कर दे....

सरगोशियां...जो दुआ को गहरे सागर मे भिगो दे....

सरगोशियां...हज़ारो ज़ख्मो को अपने शब्दों से भर दे..

सरगोशियां......कितने ही ऐसे जज़्बात पन्नो पे लिख दे...

सरगोशियां....जो हर किसी को अपनी सी लगे...प्रेम की छत के तले सारे जज़्बात यू ही लिख दे...इस को लिखने वाली यह शायरा आप सभी को इतना कहे,प्रेम की भाषा मनमोहक है...इस को आप सभी पढ़े...

Sunday, 23 August 2020

 गर्दिश मे सितारे है आज तो क्या गम है...तू साथ नहीं मेरे तो भी यह ज़िंदगी थम के भी थमी नहीं है...


बेशक थके है यह कदम पर हौसले तो अभी भी बुलंद है...क्या हुआ जो चारों तरफ अँधेरा है..क्या हुआ 


जो सब की नज़रो मे हम इक गुनहगार है...रोए क्यों कि इरादों को कमजोर करने का अभी कोई इरादा 


ही नहीं...मंज़िल तो हासिल करनी है मुझे कि तूने मुझे गिरते हुए कभी देखा ही नहीं...यही तो सच है जो 


बार-बार ठोकर खाता है,ऊपर भी तो वही जाता है..विश्वास रख मुझ पर,बुलंदी को छू कर ही तेरे पास 


आए गे..तुझे तब नाज़ होगा मुझ पर और हम फिर साथ-साथ हो जाए गे ....

 सोने का कलश और चांदी की थाली...हीरे-जेवरात से सजी इक पोशाक भारी...घर के बाहर खड़ी इक 


बड़ी सी गाड़ी...प्यार से बोले वो,चलो चलते है मंदिर..भगवान् को अर्पित करने अपने भाव और मांग ले 


उन से हम दोनों के लिए प्यार के कुछ और मजबूत धागे...मन वितृष्णा से भर आया...क्या भगवान् को 


पाने के लिए इन सब की जरुरत होती है...बोले तो कुछ भी नहीं...अपने पैदल कदमो से चले मंदिर तो 


अहसास उन को दिलाया कि खुद को कष्ट देना है तभी तो भगवान् को पाना है...किसी भूखे को खाना 


देना है तभी तो पुण्य कमाना है.....

 किस ने कहा,शब्दों को सहारो की जरुरत होती है..कौन बोला कि इन को लिखने के लिए किसी अपने 


या गैरों की जरुरत होती है...सिर्फ इक कलम और थोड़ी सी स्याही,बस इतने की ही जरुरत होती है...


जज्बातों का इस कलम और स्याही से सदियों का नाता है...पन्नों पे चलती नहीं कि जज्बात खुद ही खुद 


से निखर आते है..यह दुनियां है साहिब,बहुत कुछ सिखा देती है..मारती है जब ठोकर तो अक्ल सिखा 


देती है...देती है धोखा तो इसी स्याही को और गहरा लिखना सिखा देती है..

 सड़क के किनारे-किनारे चल ही रहे थे ...इसी सड़क के इक मोड़ पर इक दरख़्त मिला,जो था अपनी 


तमाम शाखाओं से भरा पूरा..धूप थी बहुत जालिम,बैठ गए कुछ देर इस की छाँव तले...थोड़ा सकून 


मिला फिर चलने लगे अपनी राह पे उसी तरह..रुक जाओ,आगे राह अभी कठिन है बहुत ...झुलस 


जाओ गे तुम,थकान से भर जाए गा यह तन...आँखों को उठाया,इक पल देखा फिर पूछा...क्यों साथ 


देने का इरादा है..उस की ख़ामोशी ने हम को समझाया..कोई साथ नहीं चलता,किसी के पास हिम्मत 


का इतना खज़ाना भी नहीं होता..बिंदास होना है गर मकसद अपने मे तो खुद से सफल होना है...

 नन्हा सा दिल,नन्ही सी ख्वाइशें...नन्हे सपनो की नई उम्मीदें..बहुत कुछ खो दिया तो थोड़ा सा पा लिया...


नन्हे दिल ने इसी को स्वीकार भी कर लिया...सपनों को उड़ान देने के लिए,बस चाहिए थोड़ी सी साँसे 


अभी...ज़िंदगी खूबसूरत है यह मान कर,हर दिन शुरू किया यू ही...कोई पास है, कोई क्यों दूर है..यह 


भूल अपने इरादों को और मजबूत किया अभी अभी...आगे बढ़ना है तो खुद को कुर्बान करना होगा..


किसी ने दर्द दिया या बहुत तकलीफ...यह सब भी तो पीछे छोड़ना होगा...

 वो झिलमिलाती आंखे...वो नाज़ से भरी तेरी बातें...दिल के शीशे पे जो लफ्ज़ लिख जाए,तेरी कलम से 


लिखी मुहब्बत की वो मीठी बातें..संभाल के रख ली हम ने शहद से भी मधुर तेरी बतिया...इस डर से 


कोई इन को चुरा ना ले,रूह की किताब मे छुपा ली वो मधुर बतिया ...तुझे याद करने के बहाने से,देर 


रात पढ़ते है उस किताब की थोड़ी सी बतिया...आंखे क्यों भारी है,पूछता है सुबह ज़माना हम को..जवाब 


क्या दे कि सवाल मुहब्बत का है यह बहुत पुराना...

 कदमों को ले जा रहे है पीछे,बहुत पीछे...एहसास हो चुका.तेरी ज़िंदगी मे अब हमारी कोई जगह कोई 


अहमियत है ही नहीं...परदों को गिरा दिया हम ने..खिड़की दरवाजों को बंद कर दिया हम ने..तेरी 


याद अब किसी झरोखें से दस्तक भी ना दे,इसलिए अपना शहर ही छोड़ दिया हम ने...बस तेरी वो 


झूठी बाते तेरे वो तमाम झूठे वादे,दिल मे कही बैठे है अंदर तक...क्यों तुम ने हम को हमारी ही नज़रो 


मे गिरा दिया...जन्मों तक साथ देने वाले क्यों हम को हमारे ही हाल पे छोड़ दिया...

 मुहब्बत का वो कौन सा सरूर था..वो प्यार का कौन सा रूप था..जीता रहा संग जिस के,एक दिन छोड़ 


आया उसी को जिस्म के बाजार मे...दौलत उस का शौक था,सिक्कों को गिनना मुहब्बत का फितूर था..


मुहब्बत सौदा भी है यह जान कर वो सदमे मे आ गई...बोली उस की लगती रही और वो हर रात बिकती 


रही..मुहब्बत उस की पाक थी,इबादत मे भी कोई दाग ना थी...आह उस के सीने से जो निकली,उस ने 


उस हैवान को ऐसी जगह पहुंचा दिया...आज ना उस के पास ना दौलत है ना कोई मुहब्बत का दावेदार 


है...इबादत का रुतबा तो देखिए वो आज किसी शहंशाह की मुमताज़-ऐ-खास है...

Saturday, 22 August 2020

 शमा जलती रही बुझती रही,परवाने की आस मे..ना उस को आना था ना वो आया,उस के जशने-दीदार 


के लिए...ख्वाइशें कुछ ना थी पर ख़्वाहिशों का खास दौर था...वो बला की खूबसूरत थी हर बात का उस 


को आभास था...अल्हड़ उम्र ने देखी वो शरारत,शोखी से भरी हुई...नैना बहुत पाक थे इसलिए हर 


शरारत नैनों के आर-पार थी..राहें थी पथरीली और अँधेरा साथ था...जुगनू चल रहे थे साथ उस के,उस 


को डर किस बात का था...उस को बुझना ना था कभी कि मुहब्बत उस का धर्म और विश्वास था...

 गाज़ गिरी आसमां से तो देखा उस ने आसमां को..धूल भरी आंधी जो उड़ी उस ने फिर देखा उसी 


आसमां को...फिर बरसाया इसी आसमां ने जम के बरखा-पानी..उस ने मुस्कुरा के फिर देखा इसी 


आसमां को..आसमां हैरान परेशान हुआ और उस की मुस्कान से सोच मे पड़ गया..फिर आज़माई 


उस ने अगली ताकत,सूरज का तेज़ कहर बरसा दिया..वो हंसी खुल के हंसी...और बाहें अपनी फैला 


कर सूरज और आसमां को शुक्रिया कहा...''तू जो भी दे यह तेरा अंदाज़ है..पर मैं मुस्कुरा कर हमेशा 


तेरा सज़दा करू,यह भी मेरा खासे-अंदाज़ है''.....

 आसमां से जमीन तक..जिस्म से रूह तक..

प्रेम का हर शब्द जहां जुबां खोले..

वही तो मेरी ''सरगोशियां'' है..

''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ''


 बादलों का गरजना...

बरखा का जम के बरसना..

चाँद का ओझल होना...

चांदनी का उसे ढूंढ लेना..

सितारों से भरी रात...

इक सितारे का गुम होना..

तूफानी रात गुजर जाना...

दीए की लो का फिर भी जलना..

चूड़ियों का खनकना..

मगर आवाज़ का सुनाई ना देना..

अल्फाज़ो का खामोश होना..

मगर शोर हर तरफ होना..

दिल का टूट जाना..

मगर दिल को बेहद सकून मिलना...

यक़ीनन यह सब ''सरगोशियां'' मे लिखे जाना...

Friday, 21 August 2020

 कभी तेरे लिए  पूजा का आडम्बर किया नहीं...कि पूजा की वो रस्में वो कायदे मुझ को आते ही नहीं...


सिखाया गया था बचपन मे माँ-बाबा ने,किसी को कभी दुःख देना नहीं...जाने-अनजाने भूल हो गई हो 


तो माफ़ीनामा बस सुनाया तुम्हे...तुम जग के विघ्नहर्ता ऋणहर्ता,हर रोज़ शीश नवाया मैंने...मन की 


हर बात बेशक बुरी या अच्छी,गलत रही या सही रही..तुम को ही बताया मैंने...अपनी रक्षा करने का 


वादा तुम्हे भाई बना,मैंने ले लिया तुम से...पूजा की रस्में मैं क्या जानू,बस जानू तो इतना जानू कि सुबह 


शाम तुम को याद करू सच्चे सीधे मन से....

 फरिश्ता ही तो था.जो हम को जीवन दे गया...रो रहे थे जब तो आंसू हमारे पोंछ गया...उदासी के घोर 


भंवर मे फंसे तो ना जाने कब आ कर तुम्ही ने थाम लिया...हर संकट मे पुकारा तुम को तो किसी और 


रूप मे आ कर हंसा दिया...रिश्ते इस दुनियां के कैसे-कैसे है,जिन से कितनी बार मन भर सा गया..


तुम्ही दुःख मे,तुम्ही लड़खड़ाते हुए मेरे कदमो की चाप मे...गणेशा मेरे,हम ने तो आप को भाई अपना 


मान लिया...राखी के धागे की लाज अब तेरे हाथ है,इस बहिना ने तेरा दामन सदा के लिए थाम लिया...

 वो छुपन-छुपाई वो सांप-सीढ़ी का खेल...बचपन को फिर से दोहराता यह मनमोहक खेल..कभी हम 


हारे कभी तुम हारे..कभी हम जीते तो कभी तुम जीते...हार पे कभी रोए नहीं तो जीत का जश्न कभी 


मनाया नहीं..यह ज़िंदगी भी तो आज सांप-सीढ़ी का ही तो खेल है..जब तब हार पे रोए नहीं तो आज 


दुखों के रेले पे क्यों उदास है..जीत पे जश्न कभी मनाया तब नहीं तो अब हज़ारो खुशियां भी आए तो 


गरूर कभी जताए गे नहीं..तेरी ज़िंदगी मेरी ज़िंदगी..नाम है बस जीत-हार का..कभी कोई डूब गया तो 


कभी कोई डूब के उबर गया...

 मलमल का वो दुपट्टा मुझे लौटा दे कि मेरे बाबुल के घर का ताज़ है यह ...जिस को ओढ़ाया माँ ने सर 


पे मेरे कि इस मे मेरी माँ का झलकता साया है...बचपन की सुहानी यादें जुड़ी है इस के हर धागे मे..


और हर धागे मे बाबुल की सारी दुआए है...माँ ने सहेजा था इस को मेरे सलोने रूप को महकाने के 


लिए..तुझे कैसे दे दे इस दुपट्टे को..यह खव्बों के संसार से जुड़ा मेरा बेशकीमती तोहफा है...तू दे मुझ 


को कितने तोहफे मगर यह मलमल का दुपट्टा तो मेरे बाबुल के घर का ताज़ है..शान है...

 पाज़ेब तो मेरी बजी,उस की खनक तुझ को क्यों सुनी..इस की खनक से तार तेरे दिल के क्यों जगे..


छन-छन इस के नन्हे घुंगरू बजे,तेरे मन के द्वार क्यों खुलने लगे..हवाओं मे शोख़िया है बहुत,पर इस 


के तमाम पैगाम तेरे शहर तक क्यों उड़े...इक नन्ही सी बदली गुजरी है मेरे आशियाने की छत को छू 


कर..उस को जो देखा अकेला तो तार मेरे दिल के भी हिले..फिर आए कारे-कारे बदरा,पानी की 


बौछारों से भरे...हम ने पूछा,अब क्यों आए हो..वो बोला तेरे शहर की हवा ने भेजा है हमें..

Thursday, 20 August 2020

 वो सरकता दुपट्टा..

वो आँखों का झुकना..

वो मीठी मुस्कान..

चूड़ियों का बजना..

पलकों के किनारे सजना..

दुपट्टा होठों मे दबाना..

काजल यू ही बिख़र जाना..

ख़ुशी का आंसू आंख से आना..

बेवजह हंस देना..

पायल को खुद से बजा देना..

यू ही आसमां को देख मुस्कुरा देना..

खुश होने की कोई वजह नहीं..

पर फिर भी खुश रहना...

ज़िंदगी इसी का तो नाम है...

 प्रेम पे लिखना इक चुनौती है..इस पे लिखे हर शब्द की अपनी गरिमा है..फिर भी हम ने इस विषय पे 


लिखना चुना...प्रेम इक बहती नदिया जैसा है तो हम ने अपनी कलम मे बहती नदिया का नीर भरा...


प्रेम मे दर्द है,तो क्या हुआ..हम ने कलम अपनी को ज़िंदादिल बनाया फिर आंसुओ का दर्द पन्नों पे 


लिखा..इस दुनियां मे प्रेम सच्चा विरलों मे ही दिखता है,सो हम ने राधेकृष्ण का सारा ग्रन्थ पढ़ा...कौन 


जाने इस ग्रन्थ की महिमा से इस कलयुग मे कोई राधा तो कोई सच्चा कृष्ण बन जाए...शब्दों की ताकत 


बहुत गहरी होती है...कौन कब बदल जाए,किस को कहां खबर होती है...

 अपने बाग-बगीचे की नन्ही सी चिड़िया..बाग था सारा उस का,वो थी उड़ती-फुदकती इक शानदार 


चिड़िया...बेफिक्र बेपरवाह किसी भी बात से परे,बार-बार अपने ही बाग मे खो जाने वाली वो नन्ही 


मासूम सी चिड़िया..वो बाग नहीं उस का ऐसा संसार रहा,जहा मिला उस को सब कुछ जो जो उस का 


खवाब रहा...बाग जो उस से छूट गया,रोई तड़पी नन्ही चिड़िया.. कोई नहीं मिला फिर उस को अपने 


उसी बाग के जैसा..जो उस को फिर से उड़ने देता..उस की हर कूक की बोली को समझता...

 कुछ सुना कुछ अनसुना कर दिया...कुछ कह दिया तो कुछ अनकहा छोड़ दिया...शब्द तो होते है 


हज़ारो लाखों,क्या हुआ जो सभी का अर्थ नहीं जान लिया...दुनियां कहती है तो कहती रहे,इस दिल 


के दर्पण पे कुछ लिखा तो बाकी सब मिटा भी दिया...कुछ सुनहरे अक्षर जो तारीफें-काबिल थे उन का 


मान बहुत रखा..अक्षर भी हज़ारो पढ़े पर जिस पे लिखा था रंगे-खुदा उन को ज़मीर मे अंकित कर 


लिया...छन-छन पायल बजती है यू जैसे सारे जहान से दुआ का कोई बेशकीमती खज़ाना मिल गया...


 कुछ सुना कुछ अनसुना कर दिया...कुछ कह दिया तो कुछ अनकहा छोड़ दिया...शब्द तो होते है 


हज़ारो लाखों,क्या हुआ जो सभी का अर्थ नहीं जान लिया...दुनियां कहती है तो कहती रहे,इस दिल 


के दर्पण पे कुछ लिखा तो बाकी सब मिटा भी दिया...कुछ सुनहरे अक्षर जो तारीफें-काबिल थे उन का 


मान बहुत रखा..अक्षर भी हज़ारो पढ़े पर जिस पे लिखा था रंगे-खुदा उन को ज़मीर मे अंकित कर 


लिया...छन-छन पायल बजती है यू जैसे सारे जहान से दुआ का कोई बेशकीमती खज़ाना मिल गया...


 मधुर मुस्कान लिए वो ईश्वर की इक कृति थी..प्रेम को इबादत मे बांधे वो मजबूती से खड़ी थी... ऐसा 


नहीं कि वो बहुत सुखी थी..माटी की देह से सनी वो इक साधारण सी पहचान थी...मुट्ठी भर सिक्कों 


का साथ लिए वो ईश्वर के बेहद बेहद करीब थी...किस ने उस को क्या कब और कितना दिया,इस बात 


से वो बेखबर तो ना थी...पर हर इंसान के ज़मीर से उस की जान-पहचान थी...वो ना तो खुदा थी ना ही 


मंदिर की कोई मूर्ति ना कोई ज्ञानी थी..वो तो ज़मीर को जान लेने वाली इक खूबसूरत इंसान थी...

Wednesday, 19 August 2020

 बेहद खूबसूरत है आज हवा,हर कण मे जैसे जीवन हो भरा..ना कर किसी से कोई गिला..जीवन कब 


किस का कितना रहा..जो भी पल मिले है उन को जी ले अपनी मर्ज़ी से,क्यों बेकार मे रहना दुःख की 


छाया मे रोज़ सुबह-शाम मन रख के खुद से जुदा...एक खूबसरत सी लय बह रही है आज किसी बहती 


नदिया की तरह...नीर भी भरा है इस मे संगीत की किसी मधुर धुन की तरह..गुनगुना ना संग मेरे,जीवन 


कितना रहा तेरा और मेरा...किस को क्या पता...

 वो नन्हे-नन्हे कदम बस बड़े हो गए..बड़े भी हुए और दुनियां मे कामयाब भी हो गए...वक़्त चलता रहा 


अपनी चाल से और इक छोटा सा सितारा,चुपके से चमकदार हो गया..उम्मीदों के दीए कभी बुझने 


नहीं दिए तभी तो मालिक तेरी चौखट पे हम आज शुक्राने मे झुक गए...कुछ बातें बोली नहीं जाती,


कुछ शब्द अनकहे रह जाते है..बस उस शाम को याद करते है तेरे उसी प्यार के साथ...वो कमाल 


था या यह कमाल है..पूजा के मंत्रो से जगा यह खूबसूरत सा खवाब है...

 टूटा दिल और बहते आंसू...यारा,यह तो कल की गुजरी बातें है...कौन यहाँ है अपना सब मतलब के ही 


साथी है..क्यों रो दे अब किसी की बेरुखी के लिए..क्यों उदास हो किसी गैर या किसी अपने के लिए...


जो कर दिया सब के लिए..जो निभा दिया सभी के लिए..किस ने सराहा तो किसी ने दुत्कारा..अब इस 


का भी मलाल क्यों करे...खुद ही अब खुद के लिए जिए..खुद को जी भर के क्यों ना प्यार करे...क्यों 


किसी के मिलने का या गुफ्तगू के लिए इंतज़ार करे.जिस का मन हो वो ही हम को प्यार करे...नफरत 


की कोई दीवार हम ने बिछाई ही नहीं तो क्यों ना अब बिंदास और खुशहाल जिए...

 ज़िंदगी पूछ रही है आज अभी हम से..ऐसा क्या मिला है तुम को जो इतरा रहे हो इतना...हम जो आज 


भीगे है तेरी इतनी नियामतों के साथ तो क्यों ना इतराए आज इतना...यह दो नैना दिए तुम ने, इन की 


कीमत करोड़ो मे है जिन से हम तेरी इस खूबसूरत दुनियां को देखा करते है..फिर यह सर से पांव तक 


तेरे रूप के दिए रंग मे..जिस की कीमत बेहिसाब से बेहिसाब है उतना..तेरे आंचल मे जीते है,तेरे ही 


आंचल मे सकून से सो जाते है...अब कोई हम से जले तो जले,हम तो मस्ती मे तेरी चूर रहते है..ज़िंदगी 


बोली,तुझ से मिल कर आज मैंने भी जाना कि कोई तो है जो मेरी दी नियामतों को इतना प्यार करता है..

Tuesday, 18 August 2020

 जशने-खास है तो दिन भी तो खास होगा..दुआओ से भर कर तेरा आंचल,मेरा दिल बहुत खुश होगा..


दिखावा किस को करे कि विधाता तो सब कुछ देख रहा होगा...शिकायतें होगी तो भी उस को अंदाज़ा 


होगा..वो तो विधाता है,उस से कहा कुछ छुपा होगा...एक क़तरा जब आंख से गिरता है,उस के गिरने 


की वजह वो ही जानता है..वो क़तरा कितना ग़ल्त या है कितना सही,उस के खाते मे तो सच ही लिखा 


जाता है..हमारे लिए जश्ने-खास है यह दिन,तो विधाता ने बरसा के रिमझिम हम को यह सच बताया है...

 तू है ख़ुशी मेरी..इसलिए तेरी ही ख़ुशी के लिए तेरी ही दुनियां से बहुत दूर हो गए..मेरा साया भी तुझ तक 


ना पहुंचे इसलिए हम खुद के बेहद बेहद करीब हो गए...यह बात और है तेरे लिए हर पल दुआ के तमाम 


ख़ज़ाने तुझी पे लुटाते रहे...जताने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं,दुनियादारी के दांव-पैच सीख ही नहीं 


पाए..शायद सीखे होते तो हम भी अच्छे कहलाते..संस्कारो की वो गठरी साथ लिए फिरते है,किसी को 


तकलीफ दे कर कौन सुखी रह पाता है..इसलिए ही तो,तेरी ख़ुशी के लिए तुझी से बहुत दूर हो गए...

 तू है ख़ुशी मेरी..इसलिए तेरी ही ख़ुशी के लिए तेरी ही दुनियां से बहुत दूर हो गए..मेरा साया भी तुझ तक 


ना पहुंचे इसलिए हम खुद के बेहद बेहद करीब हो गए...यह बात और है तेरे लिए हर पल दुआ के तमाम 


ख़ज़ाने तुझी पे लुटाते रहे...जताने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं,दुनियादारी के दांव-पैच सीख ही नहीं 


पाए..शायद सीखे होते तो हम भी अच्छे कहलाते..संस्कारो की वो गठरी साथ लिए फिरते है,किसी को 


तकलीफ दे कर कौन सुखी रह पाता है..इसलिए ही तो,तेरी ख़ुशी के लिए तुझी से बहुत दूर हो गए...

 यह सुबह बिलकुल वैसी ही है,जैसी बरसो पहले थी..वही रिमझिम वही हलकी बौछारें,फर्क इतना है 


अब यह सुबह कहर के आंचल तले है...वो मासूम ख़ुशी तब मेरे पास थी..पर अब वो मासूम ख़ुशी मुझ 


से दूर है...अब कोई ज़िद भी नहीं किसी ख़ुशी के नज़दीक हो जाए..तू है ना अब भी साथ मेरे तो क्यों 


उदास रह जाए..यह ज़िंदगी है मेरे यारा,आज ख़ुशी का आंचल पास है मेरे..कल होगा किसी और की 


दुनियां के तले..फिर क्यों कहे कि ज़िंदगी तूने कुछ नहीं दिया..जितना हम को दिया,उतना कितनो को 


मिला...

 मुहब्बत और जन्मों का साथ देने का वादा करने वाले..आज अपनी मज़बूरी बता मुहब्बत से कोसों दूर 


हो गए..हर जन्म मुझे सिर्फ तेरा ही साथ मिले,भरे मन से यह बात कहने वाले..इस जन्म मे गुफ्तगू से 


ही बहुत दूर हो गए...वजह क्यों पूछे गे उन से कि हम खुद ही अपनी दुनियाँ मे ग़ुम हो गए..कुछ बातें 


कुछ यादें और कुछ याद है उन्हीं के झूठे वादे...तागीद सिर्फ इतनी,अब किसी और से यह तमाम झूठे 


वादे मत कीजे..सब हम से नहीं होते जो सिर्फ तेरी यादों के सहारे जीवन जी ले...

 मुहब्बत ने कहा मैं आबाद हू..वफ़ा बोली मेरे बिना तू सर से पांव तक बरबाद है...वफ़ा है तभी  मुहब्बत  


भी साथ है..बेवफाई मुहब्बत का दुश्मन खास है..तभी दौलत ने कदम अपना रखा...अरे मेरे बिना तुम 


दोनों का क्या वज़ूद है..मैं हू तभी तेरा प्यार तेरे साथ है..जिस रोज़ मेरा साथ छूट जाए गा उसी रोज़ तेरा 


प्यार तुझ से बहुत दूर चला जाए गा..तेरी ग़ुरबत को देख तेरा साथी और उस का प्यार छूमंतर हो जाए 


गा..कौन सा प्यार कहाँ का प्यार,वो साथी जो तुझे कभी अपनी जान कहता था..तुझ से जान अपनी छुड़ा 


दूर हो जाए गा...बहुत बहुत दूर हो जाए गा...यही इस दुनियाँ का सार है..

 मेरे प्यारे दोस्तों...लेखन एक ऐसी कला है जो किसी भी लेखक या लेखिका को उस के मुकाम तक पहुंचाने 

 के लिए अपने शुभचिंतको,दोस्तों और कड़ी समीक्षा और गहरी आलोचना पर निर्भर होता है..और एक सच्चे लेखक को इस बात के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए कि उस की हर रचना पे उस को वाही-वाही भी नहीं मिले गी..पर हां,हर लेखक यह जरूर चाहता है,खास कर एक लेखिका कि उस के लेखन पे कोई भी प्रत्रिक्रिया मे,किसी भी अभद्र भाषा का प्रयोग ना हो..कोई भी महिला जब ''प्रेम'' का विषय चुनती है तो उस पे लिखना उस के लिए किसी भी चुनौती से कम नहीं होता..और प्रेम का हर रूप पन्नो पे उतारना भी सरल नहीं होता...आप के लिए पढ़ना बेशक सरल हो सकता है मगर एक लेखक की कड़ी मेहनत के बाद ही हर रचना पन्नो पे आती है...दोस्तों, मेरे विचार से एक कामयाब लेखक वो होता है,जिस के लिखे शब्द लोगो के दिलो मे-रूह तक मे उतर जाए..हर किसी को यही लगे कि इस रचना का सीधा सम्बन्ध उसी की अपनी ज़िंदगी से है...या फिर यू लगे कि यह तो लेखक की अपने जीवन की दास्तां है..मेरी पूरी कोशिश रहती है किमेरा लिखा हर शब्द आप सब की रूह तक को छू ले..जिस दिन ऐसा होगा,वही दिन मेरे लिए इस शायरा के लिए,ज़िंदगी का बेहतरीन और कामयाबी दिन होगा..मेरी ''सरगोशियां'' से जुड़े रहे और मेरे शब्दों को कामयाब बनाने मे मदद करे.......शुभ दिन...आप की अपनी शायरा ........''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ''..

Monday, 17 August 2020

 यह मुस्कराहट जो कायम है लबों पे मेरे ..इस के मोती बिखेरते जा रहे है हर चलते कदमो के तले..


अब कसूर नहीं यह हमारा,किसी का दिल कुचल गया इन कदमो के नीचे..किसी ने कर दिया हम को 


सज़दा खुदाए-रूप जान के अपना...कोई गीतों पे हमारे फ़िदा हो गया तो किसी ने परी का संदेसा मान 


हम को आसमां का सितारा कह दिया...मुस्कराहट यह और गहरी हो गई..झुक गए खुद हम ही अपने 


तमाम मेहरबानों के लिए..जो आप सब ने हम को दिया,खुदा का नायब तोहफा मान उसी के सज़दा कर 


दिया...

 कभी तू प्रेम को घोल दे प्रेम मे..कभी तू प्रेम को ढाल दे अनंत-काल के मेल मे..जब प्रेम मे दर्द हो तो पन्नो को भिगो दे आंसूओ के बोझ से..मिलन की बेला मिले तो मुस्कुरा दे झिलमिलाते समर्पण के खूबसूरत गीत पे...ऐ सरगोशियां मेरी..तू चलती रहे इस परिशुद्ध प्रेम की तरह, इन पन्नों के करोड़ो शब्दों पे..जीत ले दिल तू  हज़ार तुझ को मेरी कसम...किसी दिन वो भी आए गा,जब तुझे तेरे पन्नों के साथ,तेरे शब्दों के साथ किसी किताब मे बांध जाए गे...फिर हर घर मे होगी तेरी छवि और लोग प्रेम का सूंदर रूप जान पाए गे...''सरगोशियां'' तू इक प्रेम का ग्रन्थ है..प्रेम हर जीव की आत्मा और प्राण है..रोकना नहीं अपनी कलम को कभी,शब्दों की भीड़ मे इक तू ही अकेली है खड़ी...खूबसूरत तेरा स्वरुप है..नज़ाकत मे ढला तेरा अस्तित्व है..''सरगोशियां'' तू मेरी जान है, तू मेरा अभिमान है...रहना है तुझे मुहब्बत के सब से ऊँचे पायदान पे,जहां वफ़ा प्रेम का दूजा नाम है...इस प्रेम मे राधा का त्याग है,इस प्रेम मे कृष्णा का पावन प्रेम है...क्या नहीं तुझ मे मैंने लिखा ऐ मेरी ''सरगोशियां'' यक़ीनन तू सिर्फ  प्रेम ग्रन्थ नहीं ,तू तो मेरा दिल मेरा ईमान है...''शायरा''  

 भीगे है तुझ संग इस सावन की रिमझिम मे तो क्यों ना आसमां मे उड़ने को यह मन ना करे...तन भी 


भीगा है और यह मन भी महका है,क्यों ना दुनियां से दूर बहुत ही दूर निकल जाए...तेरे चेहरे पे बरखा 


की यह नन्ही बूंदे और माथे पे यह भीगे बरखा-अल्फ़ाज़..बोल दे ना जो दिल मे है,ना जाने फिर कब 


होगी यह तूफानी बरसात...मुहब्बत क्यों आज खामोश रहे,ज़ज्बात क्यों दिल मे ही कैद रहे..तुझे काम 


करने से फुरसत नहीं और हम को कुछ काम करने का मन ही नहीं...

 काले घनेरे बादल जम के बरसे..इतनी गड़गड़ाहट के तले यह बेइंतिहा बरसे...इन के बरसने की सीमा 


यू देखी जैसे कोई दुल्हन बाबुल के घर से विदा होते बरसे...बरस के थमे तो बिखेरा जादू ऐसा जैसे वही 


दुल्हन पिया संग उस के देस चल दे...इंद्रधनुष आसमां मे निखर-निखर आया..क्यों लगा जैसे प्रियतमा 


ने अपने पिया को जोरों से पुकारा...यह काले बादल जब भी जम के बरसते है,चुरा लेते है दिल किसी का 


तो किसी को बेइंतिहा खुशियां देते है...

 सड़क की इन गलियों मे अब फ़रिश्ते नहीं आते...अब सुबह की धूप मे परिंदे चहकने भी नहीं आते..


फूल खिलते तो है मगर उन की खुशबू मे वो अंदाज़ नज़र नहीं आते...कलियां खिलने से पहले रौंद 


दी जाती है..वो बचपन वाले मासूम चेहरे अब सिर्फ दहशत मे ही नज़र आते है...यह कौन सी दुनियां 


है जहां इंसानो का असली चेहरा नज़र ही नहीं आता..रूप बेशक सलोने दिखे पर भीतर का शैतान अब 


छुपा कर रखा जाता है..सड़क की इन गलियों मे अब कोई कोई सच्चा इंसान नज़र आता है..

Sunday, 16 August 2020

 तुम ने बेरुखी का तोहफा हम को दिया..सज़दा किया और इसे क़बूल किया..वल्लाह जानम,तूने कुछ तो 


हम को दिया...तेरी बेरुखी साथ लिए उड़ते-उड़ते फिरते है कि जाना,तूने हमे बेरुखी के काबिल तो 


समझा...सुन जरा,जिस रोज़ हम को समझ जाओ गे..हमारे जैसा पूरी दुनियां मे जब कोई ना ढूंढ़ पाओ 


गे..होगा पछतावा तब तुम्हे अपनी इस बेरुखी का और लौट के वापिस हमारे पास आना चाहो गे..पर 


तब नसीब होगा तेरा ऐसा,इस जहां मे हमारा कोई नामो-निशाँ ही ना होगा...

 ''मैंने उस को चाहा राधा की तरह और पूजा भी मीरा की तरह..फिर भी,प्रेम का सागर मुझे उस से ना 


मिला..ऐसी कौन सी ख़ता का फल मुझ को मिला''...सुन मेरी सखी,तुम ने जो प्रेम उस को किया..वो 


प्रेम नहीं इक सौदा है..प्रेम तो नाम है बलिदान का,प्रेम तो रूप है त्याग का..प्रेम कभी दर्शाया नहीं जाता..


सुन मेरी सखी,रूप तेरा उस को मोह ना पाए गा..जो किया उस के लिए,क्यों उस को जता दिया..प्रेम 


तो है भाषा मौन की,खुद को कर दे क़ुरबान उस की हर ख़ुशी के लिए..राधा..राधा इसलिए बनी..त्याग 


दिया सब कृष्णा के लिए और फिर कृष्णा की राधा हो गई..

 सिक्कों की खनक और तेरे प्यार का पलड़ा...मोती-जेवरात और तेरी वफ़ा का सदका...कही भी तू बिक 


नहीं पाया..बस,यही फकीरे-अंदाज़ तेरा हमे पसंद आया...वो तेरा सफ़ेद लिबास,जैसे किसी फ़रिश्ते ने 


हम को दर अपने पे बुलाया...कुछ नियामतें बांटी तुम ने,कुछ नियामतें बांटी हम ने और ज़िंदगी का वो 


अधूरा ख्वाब जैसे निभा दिया तुम ने हम ने...ज़िंदगी का यह खूबसूरत फ़लसफ़ा तो अब समझ मे आया..

 सुनसान वीरान राहों पे निकल गए दूर बहुत ही दूर...कभी ना लौट आने के लिए..तभी एक पुकार सुनाई 


दी ''दूर मत जाना,कभी मत जाना''...मुड़ कर देखा तो कोई नज़र नहीं आया...भरम है,सोच फिर राहों 


पे कदम बढ़ा दिए..''कभी दूर मत जाना''..फिर वही पुकार..इस बार भी कोई ना था..खुद के दिल मे 


झाँका तो अक्स अपना ही नज़र आया..जो था मेरा और सिर्फ मेरा..जो था ख़ौफ़ज़दा मुझे खो देने का...


हम मुस्कुराए और लौट आए अपनी खूबसूरत बसती राहों  मे..कोई तो है जो हम को इतना चाहता है


बेशक अपना अक्स ही सही...

Saturday, 15 August 2020

 बेहद ख़ामोशी से उस को जो कहा..उतनी ही ख़ामोशी से उस ने भी सुना...लफ्ज़ बोले नहीं मगर इक 


दूजे ने सब कुछ समझ लिया...यह प्रेम की धारा है,जब भी बहती है बेइंतिहा ही बहती है...कितनी पाक 


है यह खुद ही बयां कर देती है...रिश्ते-पाक कहां मांगती है बस इक लय मे बंधी इक धुन मे सजी,उसी 


को समर्पित हो जाती है...इक ने कुछ भी कहा नहीं पर दूजे ने फिर भी सुना..प्रेम का यह रूप कितना 


उज्जवल है..यह किताबों मे कब था पढ़ा....

 कैसा नशा है यह गुफ्तगू का...आँखों के मोती फ़िर झर-झर कर बह निकले है...इन का फ़साना सिर्फ 


इतना है कि यह भी अब तेरे अपने है...भीगी है चुनरी भीगे है गेसू पर चाँद के दीदार को फ़िर तरस रहे 


है यह आंसू...ख़ुशी मिली तो भी बह गए..तूने समझा तो भी सब सह गए...आसमां का चाँद भी तो ऐसा 


ही है..कभी निख़र आता है बादलों की ओट से तो कभी छुप जाता है बादलों की गोद मे..यह चांदनी भी 


कमाल है,तरसती है उसी के दीदार को जो उस का हो कर भी उस के कभी बेहद करीब है तो कभी 


बहुत दूर हो कर भी उसी की आगोश का मालिक है...

 वो कहते है,हम को पढ़े गे वो सारी-सारी रात...माशाआल्हा,हम कोई किताब नहीं जिस को पढ़े आप पूरी 


रात...वो बोले,हम तो आप को पहचानते है...वल्लाह,यह क्या बात हुई कि हम को पहचानते है...जनाबे 


आली,इस दुनियां मे ऐसा कोई पैदा हुआ नहीं जो हम को पहचान सके...फिर हम को पढ़ना नामुमकिन 


से भी नामुमकिन होगा आप के लिए...कोई छू ना सके वो सितारा है हम...जिस को रोज़ देख सके वैसा 


इक चाँद है हम...अब बोलिए,कैसे हम को पढ़ या पहचान सके गे आप...


 आसमां के उस छोर बसेरा है तेरा..जमीं की सतह पे बसा है आशियाना मेरा...उस छोर पे तुम इस छोर 


पे हम..मगर रूह एहसास दिलाती रहती है,यही कही मेरे आस-पास हो तुम...इतने पास कि तेरी महक 


रातो को मुझे सुलाने आती है...और तेरी आवाज़ की खनक,सुबह के पहले भोर मे प्यार से जगा देती है...


खुशनसीब है इतने,तुझे हर पल पास अपने पाते है..और कही देखे तो कितने है ऐसे जो बेहद पास रह 


कर भी पास नज़र नहीं आते है... 

 वो तेरा दो पहियों की गाड़ी पे मुझे मिलने आना..एक सिक्का तेरा एक सिक्का मेरा,और दुनियां के मेले 


मे ग़ुम हो जाना..चेहरे पे तेरे थी,इक निश्छल सी हंसी..जो मेरे लिए रही हमेशा करोड़ो की ख़ुशी..आज 


यह तेरी चार पहियों वाली लम्बी सी गाड़ी मगर कहां गई तेरी वो निश्छल सी हंसी...लौटा दे ना मुझे वो 


दो पहियों वाली गाड़ी और अपनी वो निश्छल सी हंसी..आ फिर से खो जाए दुनियां के उसी मेले मे,इक 


सिक्का तेरा और दूजा सिक्का भी तेरा...बस लौटा दे मुझे अपनी मासूम ख़ुशी...

 कैद ना कर किसी बंधन मे आज़ादी मुहब्बत का गहना है...मुहब्बत को दिया हज़ारों लम्हों मे मगर 


शिकंजे मे खींचा जरा सा भी नहीं..राहें खुले सारी तेरे लिए,पर किसी भी उम्मीद का दीया चाहा तुझ से 


कभी भी नहीं...कामयाबी की हर सीढ़ी को तू ही हासिल करे पर हम को कीमत उस कामयाबी की मिले,


यह ख़्वाब कभी देखा ही नहीं..तेरे कदम बढ़े बहुत आगे और हम तेरे पीछे पीछे रहे तेरा साया बन कर..


यह मुहब्बत मे की कोई क़ुरबानी नहीं..बस मुहब्बत बंधन नहीं..आज़ादी का खूबसूरत गहना है...

Friday, 14 August 2020

 बरसते सावन की यह तेज़ बौछारें क्यों दिल को धड़काती है...डर जाते है बादलों की गड़गड़ाहट से 


और कांप जाते है...बादलों का शोर और बरसते सावन का खौफ, खुद मे सिमटने पे मजबूर कर देता 


है...एक मीठी सी याद दहक रही है दिल के मासूम से कोने मे...तेज़ बौछारों का कम होना और फिर 


बादलों का भी खामोश हो जाना..खिड़की से देखा तो चाँद निकल आया है..बेसब्री से ढूंढ रहा है अपनी 


चांदनी को,बादलों के खौफ से परे इन का प्यार शबाब पे आया है...

 नैना सुर्ख है तो क्या हुआ, यह रोए नहीं है..बस नीर बहा कर निख़र गए है..उदास नहीं है बस तुम्हे 


याद करते-करते मुस्कुराना भूल गए है..नूर चेहरे का कम हुआ है,आसमां से फरिश्तों ने तेरा पैगाम 


देना बंद जो कर दिया है...सोच रहे है इस दिल ने धड़कना क्यों छोड़ दिया है..दिमाग ने एहसास 


दिलाया,वो तो कब से तेरे पास गिरवी पड़ा है...तेरी भेजी वो नन्ही सी चिड़िया मेरे घर के आंगन मे 


रोज़ एक एक कर पंख अपने गिरा जाती है..यक़ीनन यही तेरा पैगाम है कि हमारा दिल तेरे पास 


गिरवी पड़ा है...

 जब तल्क़ यह ज़िंदगी समझ आए गी तुम को,तब तक तो हम अपनी साँसे ही छोड़ जाए गे..तभी तो एक 


बार नहीं बार-बार ताकीद किया करते है..कुछ रास्ते दिखते नहीं उन को शिद्दत से संवारा जाता है..जो 


नदिया बहती जा रही है अपने सही रास्ते पे,उस को समझने के लिए उस के नीर का अर्थ समझा जाता 


है...हाथ से छूने की जरुरत क्या है,जरा रूह अपनी से देख..वो कभी तेज़ तो कभी धीमी चाल से आखिर 


अपने समंदर मे घुल जाती है..और यह समंदर इंतज़ार मे उसी की,सदियों से उस के घुलने की राह देखा 


करता है...

Thursday, 13 August 2020

 चाँद ने दी राह सूरज को तो सवेरा हो गया...सूरज ने खुद को छुपाया तो बादलों का बसेरा हो गया..यह 


बादल खूब बरसे तो आसमां निख़र निख़र गया...शाम को देने रास्ता अब यह आसमां भी धीमे धीमे से 


सरक जाए गा...फिर होगी रात तो चाँद फिर से कारे आसमां मे चमक जाए गा...सृष्टि का नियम कब 


बदलता है..फिर इंसा को क्यों लगता है,यह गम की घोर घटा छटे गी नहीं...खुद को खुदा मानना छोड़ना 


होगा तभी तो उस खुदा का बंदा हो पाए गा...देखना,यह समां फिर रंगीन हो जाए गा..

 सिंगार करे या संवर जाए..या फिर पायल की छनकाती रुनझुन लिए तेरी दीदार के लिए आ जाए...मेरा 


सादा रूप है खाव्हिश तेरी,क्यों ना अपनी सादगी से तेरे वज़ूद मे फ़ना हो जाए...ना हाथों मे कंगना ना 


आँखों मे कजरा..एक सादा सा लिबास पहने रूबरू तेरे लिए  होना... तेरे ही अक्स मे ढला यह रूप 


कहां रहा अब मेरा ...समर्पण की अद्भुत बेला और यह प्रेम तेरा और मेरा...कहानी लिख जाए गा ऐसी, 


याद करे गी जिसे यह दुनियां,कभी साँझ तो कभी सवेरा..

 नज़्म हो के ग़ज़ल हो या सुबह की उजली धूप की तरह गुनगुनाता सा कोई खूबसूरत गीत हो...जो भी 


हो कुदरत की बनी नायाब सी कलाकृति हो...मुस्कराहट जो खिले होठों पे,गुलाब की पंखुड़ियों की तरह 


महकता चमन हो...दर्द-तकलीफ हो या उजड़े हुए मन का आशियाना,सिर्फ तेरे आने की आहट दे जाती 


है सकून और हंसी का छलकता पैमाना...मुस्कराहट तेरी बेशकीमती है बहुत ,इस को लबों पे सजाए 


रखना...हम मिले गे तुम्हे मनभावन रूप लिए सो कुदरत की नायाब नियामत हमेशा बने रहना..

Wednesday, 12 August 2020

 तेरे प्रेम के रंग मे रंग कर..जग के तानों को जाना..तू है मेरा और मैं हू तेरी,किसी बंधन से अब क्या नाता..


परिशुद्ध प्रेम की असली परिभाषा..बंधन से दूर रूह ने रूह को कितनी बार पुकारा...दिल की हर इक 


धड़कन तेरे दिल की धड़कन सुन लेती..तेरी आँखों के गिरते आंसू,चुनरी मेरी हर रात भिगोते...तेरे प्रेम 


की हर आहट से मेरी दुनियां जगमग करती..तभी तो दुनियां तेरे नाम से पहले मेरे नाम को तुझ से पहले 


लिखती..अर्धग्नी नहीं बनी मैं तेरी,फिर भी प्रेम की हर सीढ़ी तेरे संग पार मैंने कर ली..तेरे प्रेम मे पगी यह 


पगली,किसी रिश्ते की नहीं है भूखी..तेरा प्रेम मिला है इतना तभी तो राधा ही बनी  प्रेम की उजली धारा..

 वो कान्हा ही तो थे जिन के बोल सुन,नन्ही राधा ने अपनी आँखों को खोला था..पहली नज़र और पहली 


बार अपने कान्हा को ही देखा था..अनंत-काल का अलौकिक यह प्रेम,कृष्ण-राधा का प्रथम चरण ही था..


बालपन का प्रेम था दोनों का इतना गहरा,जग ने तब भी कितना पहचाना था..वो तो था ग्वाला कान्हा और 


राधा का प्रेम सुहाना था..ना कोई नाता-रिश्ता चाहा बस शुद्ध प्रेम की चाहत ने दोनों को एक ही रंग से 


रंग डाला था..द्वारकाधीश बने जब कृष्णा,उस राजा को कब चाहा था..ग्वाला कान्हा था उस की पूंजी,इस 


के सिवा राधा ने कुछ और ना माँगा था...

Tuesday, 11 August 2020

 क्यों बेहद से भी बेहद खूबसूरत है यह सुबह..क्या कान्हा तेरे आने की ख़ुशी से यह आसमां-धरती का 


रूप,पूरे सलीके से जैसे निखर आया है...तेरे आने की ख़ुशी,तेरे नन्हे रूप की यह अनोखी छवि..कहर 


के इस दौर मे दे रही बेइंतिहा ख़ुशी...करिश्मे दिखाने वाले मेरे कान्हा सुन ना,इस कहर को हटा दे ना..


अपनी राधे की बात तुम ने कब टाली है..कलयुग है तो क्या हुआ तेरी राधे तो आज भी निराली है..प्रेम 


का परिपूर्ण रूप लिए वो आज भी तेरे ही रंग मे रंगी,तेरी भोली अल्हड़ बाला और राधे है...

 ना जाने कितने ही नाम,कितने ही रूप ले..धरा पे आए गोपाला तुम..खुशनसीब हो,दो दो माओं का प्यार 


लेते रहे तुम...यह करिश्मा ही तो था,सब को अपने रूप से और कर्मो से लुभाते रहे..किसी के लिए रहे 


गोपाल किसी के लिए माखन चोर...फिर भी सब के रहे चित-चोर...तुम को देखे या लीला तुम्हारी,कान्हा 


तुम हो जग को शुद्ध प्रेम का पथ और पाठ सिखाने वाले...परिशुद्ध प्रेम का उदाहरण देने वाले,ऋणी हो 


गए हम कान्हा तेरे...जन्म भी लीला,कर्म भी लीला..प्रेम पाठ भी तेरी अनमोल लीला...

Monday, 10 August 2020

 क्यों ना आज से हम तुम अज़नबी बन जाए...एक ही धारा के दो अलग किनारे बन जाए..याद रहे,यह 


सफर अज़नबी बनने का है..इक दूजे से जुदा होने का नहीं..मैं रहू गी तेरी वही पावन नदिया,जिस को 


सिर्फ तेरे ही किनारे थमना है..बेवफा ना मुझ को होना है और ना तुझे कही और जाना है...यह इम्तिहान 


होगा तेरे-मेरे अनंत-काल के प्रेम का..अज़नबी बन कर फिर मुझे मिलना प्रेम के उसी पुराने रूप मे..


राधा भी मैं, धारा भी मैं..कृष्णा भी तुम और मेरे श्याम भी तुम..चल आज से अज़नबी हो गए मैं और तुम.

 यह कलम सोए तो सोए कैसे कि तेरे दिल की स्याही इस कलम मे खत्म होती ही नहीं..लफ्ज़ो का इशारा 


रुकता है जब-जब,तेरे दिल की किताब उठा देती है लफ्ज़ो को अपनी तन्हाई के तहत...भरते है यह नैना 


जब भी नींद की आगोश मे,क्यों उठा देते है गीत तेरे आधी रात की बेला मे...यह कजरा जब तक तू ना 


बहा ले इन नैनों से,तेरी शरारत रुके गी कैसे...यह गज़रा खुल के ना बिख़र जाए जब तक ,तेरे अंदाज़ 


रुके गे कैसे...सर-आँखों पे तुझे जब खुद ही बिठाया है मैंने तो तेरी हर शरारत को नज़रअंदाज़ भी कैसे 


कर दे...


 वो खामो-ख़याली थी तेरी या कोई बेवजह की उदासी ...तड़प के यू बिखर जाना,यह कोई अदा थी या 


किसी दर्द से बेहाल हो जाना..पांव के अंगूठे से जमीं को कुरेदना,इस को तेरा बचपना कहे या अल्हड़ 


प्रेम का जनून कह दे...बारिश मे खुद भीगना और छाते से मुझे ढांप देना,क्या इसे तेरा मुकम्मल इज़हार 


मान ले...कितनी भूलभुलैया है तेरे इकरारे-प्यार मे..कहना कुछ भी नहीं मगर इशारों की भाषा मे दिल 


अपना लुटा देना..तेरा भोलापन ही है तेरी खास अदा,रंजिशे-प्यार की क़बूल है हम को ऐ जाने-वफ़ा...

 समंदर से भी गहरी वो काली आंखे..इतनी नशीली कि शराब को भी मात दे गई वो बेपरवाह आंखे..


चाहा कि खो जाए उन की गहराई मे और कभी ना लौटे इस दुनियां की सच्चाई मे..सब कुछ भूल 


कर जो डूबे उन बेशकीमती आँखों मे..वल्लाह,क्या क्या ना पाया उन आँखों मे हम ने..हज़ारो जज़्बात 


जो टूटे थे..बेइंतिहा आंसू जो गम मे भीगे थे...दर्द-तकलीफों के ऐसे मंज़र जो चट्टानों को भी अपने दर्द से 


बेहाल कर दे..मशक्कत की हम ने बहुत इन के हर दर्द को पीने की..सब निकाल बाहर हम ने,इन 


आँखों को जीना सिखा दिया..आज यह हंसती है पुरजोर ख़ुशी के वज़ूद से और हम खूबसूरत आँखों 


के दीवाने बने इन्ही को निहारते है...

Sunday, 9 August 2020

 हज़ारो ख़ामोशीया जब एक साथ बोल उठी तो पत्थर मे भी जैसे जुबां आ गई...कौन कहता है,पत्थर 


बोला नहीं करते...शिद्दत से गर पूजा जाए तो पत्थर मे भी इंसा मिल जाते है...बात करे इसी शिद्दत की 


 सज़दा करे इसी पत्थर का तो भगवान् भी इन्ही मे दिख जाते है..टुकड़ों को इत्मीनान से जोड़ा,किसी भी 


इम्तिहान से परे इन को खूबसूरत सांचे मे ढाला तो यह पत्थर बेइंतिहा शानदार हो गए...उम्मीद से दूर 


सूरज की पहली किरण की तरह और रात के चाँद की शोख चांदनी की तरह..यह पत्थर गहरी ख़ामोशी 


मे भी आवाज़ बन जाते है...

 नन्हा सा मोती आंख से फिसला और लब पे रुक कर मुस्कुरा दिया...लब ने प्यार से चूमा उस को और 


गला जैसे रूँघ गया...कीमत इस मोती की सब ने जानी और यह नन्हा सा मोती रूह की आगोश मे 


जैसे घुल-घुल गया...पूरा जिस्म जैसे महक गया और सर से पाँव तक यह जैसे नियामतों से भर गया...


बहुत मोती बह गए इन आँखों की राह से..यह नन्हा सा मोती कैसा पैगाम दे गया...यह आँखों की वो 


रिमझिम बारिश ना थी,यह तो शुक्राना और मुस्कान लिए नन्हा सा फरिश्ता रहा....

Thursday, 6 August 2020

आंख का यह अश्क, बता तो तेरी रज़ा क्या है...यह तोहफा है वफ़ा का या ज़ज्बातो का नायाब सा 

ताजमहल है...गर वफ़ा पाक है तो बहने दे इस को...किसी रोज़ यही अश्क़ बने गे ताजमहल वफाए-

मुहब्बत के सिलसिलेवार के...आखिरी सांस तक वफ़ा का दामन थामे रखना कि ताजमहल मुहब्बत की  

झूठी वफ़ा के किरदारों पे खड़े नहीं होते..यह ताजमहल भी रोज़ बना नहीं करते,इस जहां मे मुमताज़ 

के शहंशाह और शहंशाह की मुमताज़ रोज़ पैदा भी नहीं हुआ करते...

Tuesday, 4 August 2020

मदमस्त मौला..किसी की ना सुनने वाला..खूबसूरत मगर प्यार का भार उठाए एक दम खामोश रहने 

वाला..कभी भर गया दर्द से तो कभी रो दिया दुःख के बोझ से..सावन के महीने मे उड़ चला किसी की 

तलाश मे..भीगने के डर से परे मदहोश है प्यार के खुमार मे..परिंदो की तरह पंख नहीं पर चाहत के 

हज़ारो रंग साथ लिए...रंग है वफ़ा का खास साथ सदा,जो हर मौसम का रंगे-खास है...पूछिए ना,यह 

कौन है.......यह तो दिल है बेचारा और भला कौन है....
नयना छलक गए यू ही..क्या बात है...पलकों के कोर भीगे साथ,यक़ीनन यह प्यार है...अश्रु-धारा बह 

चली गालों पे,वल्लाह..मुहब्बत बेहद पाक और साफ़ है...यह कौन सा पायदान है इबादत का,जहां ना 

कोई रस्म है ना कोई रिवाज़ है...मन के फूल खिल गए,नयना रोते-रोते भी हंस दिए...पलकों का यह 

शामियाना तुम से कोई शिकायत करता नहीं..तुम ने दी इज़ाज़त अपनी ज़िंदगी मे,हमारे कदमों की इस 

अनोखी चाल की...शुक्रिया तुम को कहे या तक़दीर अपनी को सलाम दे...नयना फिर छलके,अब बता 

क्या बात है....
डोर तेरे साथ की कितनी दूर ले जाए गी..तेरे हाथ मे मेरा हाथ है,यह साथ कब तक निभाए गी...आसमाँ 

के छोर तक या अनंत-काल की शपथ तक...सितारों के झुरमुट मे चाँद सदियों से कायम है...ग़ुम होता 

है कभी घने बादलों मे पर साथ चांदनी का ना छोड़ता है...हज़ारो जन्म लेते है,दुनियां छोड़ भी देते है..

पर साथ होते है वो सदियों तल्क़ जो रूह से साथ जुड़ जाते है...अब फैसला कुदरत का है वो कितना 

झुकती है इस रूहानी प्यार पे...हम तो सज़दा कर चुके,मोहर लगाना खुदा का काम है...
खनक रहे है तेरे वो लफ्ज़ मेरे दिल के आशियाने मे..मेरे आस-पास जैसे घेरा बनाए बैठे है तेरे वो तमाम 

लफ्ज़...कौन कहता है कि लफ्ज़ सुने और हवाओ मे ग़ुम हो गए...सुन के, दिल के कोने मे संजोना किस 

किस को आता है..वो कोना जो तेरे प्यार के तोहफे से मालामाल है..वो कोना जो तेरे दर्द से भी बेहाल 

है..वो कोना जो तुझे अपनी इबादत के धागो मे पिरो के रखता है...तू जी बेखौफ कि तुम को हम ने 

तमाम बलाओं से बचा कर जो रखा है..फिर से खनका दे लफ्ज़ अपने, इस दिल के कोने मे...

Monday, 3 August 2020

''सरगोशियां.इक प्रेम ग्रन्थ'' ..अलौकिक प्रेम गाथा..खूबसूरत प्यार की खूबसूरत परिभाषा लिखती..नज़र के पास,नज़र से बहुत दूर..जिस्म की हद से परे मगर रूह से जुड़ी हुई..बेबाक अपनी बात लिखने वाली यह सरगोशियां...कभी यू ही हंस दे,बच्चे की तरह..कभी जोर से खिलखिला दे किसी अल्हड़ प्यार की तरह तो कभी संजीदा हो जाए उदास मुहब्बत की तरह...कभी प्रिय की इंतज़ार देखती तो कभी प्रिय की आँखों मे डूबती-उतरती मदहोश सी सरगोशियां...कभी प्रियतम की बाहों मे अपने आंसू बहाने के लिए बेताब यह खामोश सी सरगोशियां...लिखती है और लिखती रहे गी यह सरगोशियां..पर बेवफाई के दाग से परे साफ़-पाक मुहब्बत को अनंत-काल तक सँभालने का जज़्बा लिए यह खूबसूरत मासूम सी सरगोशियां...जो लिखती है प्रेम मे कुर्बान होने के अल्फाज़,प्रेम को दुआ के ख़ज़ाने से संवारती सरगोशियां...और भी प्रेम के हज़ारो रूप-रंगो से सजी-धजी यह सरगोशियां...प्रेम पा लेने या हासिल कर लेने का नाम नहीं...राधा-कृष्ण के अटूट प्रेम को शब्दों मे बांधती यह मेरी लाड़ली सरगोशियां...आप सभी के दिलो को छूती मेरी यह सरगोशियां.....अपने तमाम दोस्तों को अपनी तरफ खींच लाने का गुर जानती है मेरी...''सरगोशियां''       ........शायरा ...

Sunday, 2 August 2020

कुछ नहीं कहा बस खामोश रह गए..दर्द के दामन से जो उलझे तो ग़मगीन हो गए..कृष्ण के जीवन 

को जो निहारा तो हैरान रह गए..अपने कष्टों को मामूली सोच आंसू पोछ लिए..वो कृष्ण जो अभी जन्मे 

भी ना थे,उन को खत्म करने की साज़िश अपनों ने ऐसी रची कि हम यह भूल गए कि दुःखों ने हम पे 

दस्तक भी दी है...जब कष्टों का दौर कृष्ण ने झेला तो हम इंसान क्यों रो देते है..बार-बार अपने उसी 

कृष्ण को याद करते है,जिस का जिक्र हम अपने पन्नो पे करते रहते है...

Saturday, 1 August 2020

छोटी छोटी बातों से जो दिल को छू ले...खुद की ख़ुशी से पहले उस की ख़ुशी सोच भर ले...साथ हू तेरे,

यह कह कर उस का दुःख कुछ कम कर दे..पूजा के धागों मे रोज़ नाम उस का पाक कर दे...कुछ भी 

ना लेने का जज्बा मगर फिर भी उस के लिए मालिक से,उस की हर ख़ुशी मांग ले...कोई दिखावा ना 

कोई छल-कपट किसी के मन मे रहे...उस के दुःख मे रो दे,उस के सुख मे आंखे ख़ुशी से नम कर ले..

क्या कोई दिन होता है दोस्ती के रिश्ते के लिए...बिना मतलब जो दोस्ती ताउम्र निभा दे,खुदा से उस का 

दर्द खुद के लिए मांग ले...ऐसी साफ़-पाक दोस्ती क्या रोज़ आती है...
कुछ तो बोलिए ज़नाब..मौका-ए-दस्तूर पैमाने पे है...खामोशियाँ बोलने लगी है अब तो,इन दीवारों ने 

भी दम को साधा है..आसमाँ बरसने से कोसों दूर है...तेरे बोलने की इंतज़ार मे हर परिंदा भी जैसे तेरे 

लिए खामोश है..खिलने लगे है फूल तेरे लिए...ईद का चाँद भी देख ना,निकल आया है...बख्शीश दे दे 

कर हम ने तो,हज़ारो दुआओं के तहत तुझे आदाब बजाया है...यह हुनर नहीं ज़नाब,यह तेरे लिए हमारा 

प्यार उमड़ कर सामने आया है..
 दिल की इस धक्-धक् से ज़िंदा है,ज़माना समझता है...इस की हर आवाज़ पर ज़माना महकता है...

किसी को यह दिल लगता गरूर वाला है..किसी को यह ज़िंदगी को समझने वाला लगता है...किसी ने 

अपने दिल पे हाथ रख कर,इस दिल को सज़दा तक कर दिया...हैरान है,इस नन्हे से दिल के लिए क्यों 

हज़ारो परेशान है..मगर यह दिल तो तेरे ही दिल से जुड़ा तो बस ऐसा जुड़ा,किसी ने इस दिल से क्या और 

क्यों कहा...इस का ख्याल है भी कहां..दिल की यह धक्-धक् तो ज़िंदा है तुझ से...यह हम को है पता..
एक अनोखी सी अदा और हम तो जैसे शहज़ादी ही बन गए..कुछ नहीं मिला फिर भी जैसे राजकुमारी 

किसी देश के बन गए..सपने देखे बेइंतिहा,मगर पूरे नहीं हुए..मगर हम तो जैसे सांतवे आसमान पे आ 

गए...मुट्ठी भर दौलत साथ लिए हम तो जैसे,महारानी के लिबास मे निखर-निखर गए...यह इस ईद का 

कमाल है या हम खुदा की पनाहों मे सज़-संवर गए..कुछ मिला या ना मिला,पर हम खुदा के नेक बन्दों 

मे शामिल हो गए...
नज़र से परे पर नज़र के पास है...दुआ दिल मे है और दिल के पास भी है..हाथ उठा दिए इबादत मे और 

सब की ख़ुशी के लिए मुस्कुरा दिए..क्यों रहे दिलों मे मैल,यह भी कोई बात है..भूल जाना है तमाम वो 

गिले-शिकवे जो कभी दिलों पे हावी थे...उस की इबादत के लिए कौन सा वक़्त ढूंढे कि हर लम्हा तो 

मिला ही उस से है...तुम भी कहो हम भी कहे,सब मिल के कहे...दर्द-दुःख के बादल अब तो छंट जाए 

यह ईद कुछ ऐसी ही आई है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...