हम बिंदास मुस्कुराए तो यह कहना था उन का...यह शरारत भरी मुस्कान आग लगा जाए गी..हम तो
है नन्ही सी जान,आग लगाने की जुर्रत कैसे कर पाए गे..वो बोले,हम कुछ समझ नहीं पाए है...तुम हो
एक पहेली ऐसी,जिसे आज तक ना सुलझा पाए है..रख दिया घास और आग को एक साथ हम ने..और
इक बिंदास मुस्कान फिर लबों पे हमारी थी..आतिश दीजिए इस घास को,खुद ही समझ जाए गे..फिर
भी ना समझ पाए तो अनपढ़,आवारा और बुद्धू ही कहलाए गे..
है नन्ही सी जान,आग लगाने की जुर्रत कैसे कर पाए गे..वो बोले,हम कुछ समझ नहीं पाए है...तुम हो
एक पहेली ऐसी,जिसे आज तक ना सुलझा पाए है..रख दिया घास और आग को एक साथ हम ने..और
इक बिंदास मुस्कान फिर लबों पे हमारी थी..आतिश दीजिए इस घास को,खुद ही समझ जाए गे..फिर
भी ना समझ पाए तो अनपढ़,आवारा और बुद्धू ही कहलाए गे..