ज़िंदगी की उलझनों से परे,परेशानियों की इंतिहा से जुदा हो के..यू ही कभी चलते-चलते हम से मिलने
आ जाना..ज़िंदगी बेशक मुकम्मल ना सही,पर गम कैसा..यह मुकम्मल कब कहाँ किस की हुआ करती
है..ज़द्दोजहत तो ताउम्र चलती है..कभी रोता है कोई तो कोई कभी बेवजह परेशां हुआ करता है..इस
ज़िंदगी को जीना किसे आया है..कभी गम से परे,उलझनों से परे..इस ज़िंदगी को जी के देख जरा..यह
कभी कभी हम को प्यार से सँवार भी दिया करती है...
आ जाना..ज़िंदगी बेशक मुकम्मल ना सही,पर गम कैसा..यह मुकम्मल कब कहाँ किस की हुआ करती
है..ज़द्दोजहत तो ताउम्र चलती है..कभी रोता है कोई तो कोई कभी बेवजह परेशां हुआ करता है..इस
ज़िंदगी को जीना किसे आया है..कभी गम से परे,उलझनों से परे..इस ज़िंदगी को जी के देख जरा..यह
कभी कभी हम को प्यार से सँवार भी दिया करती है...