Monday 9 March 2020

ज़िंदगी की उलझनों से परे,परेशानियों की इंतिहा से जुदा हो के..यू ही कभी चलते-चलते हम से मिलने

आ जाना..ज़िंदगी बेशक मुकम्मल ना सही,पर गम कैसा..यह मुकम्मल कब कहाँ किस की हुआ करती

है..ज़द्दोजहत तो ताउम्र चलती है..कभी रोता है कोई तो कोई कभी बेवजह परेशां हुआ करता है..इस

ज़िंदगी को जीना किसे आया है..कभी गम से परे,उलझनों से परे..इस ज़िंदगी को जी के देख जरा..यह

कभी कभी हम को प्यार से सँवार भी दिया करती है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...