Monday 30 March 2020

शुद्ध प्रेम की परिभाषा बार-बार लिखते रहे..परिशुद्ध प्रेम के मायने भी जग को समझाते रहे...कौन इस

को समझा तो कौन इसी प्रेम की आड़ मे किसी को दग़ा देता रहा..कही कोई इसी जग मे इस परिशुद्ध

प्रेम की मिसाल बन गया...तू ही तू..बस तू ही तू..मन मे तू,रूह मे भी तू..अनंत-काल का वादा कर के

सब को जैसे भूल गया..कोई प्रेम को खेल समझ,ना जाने कितनो को दग़ा देता रहा..सूरत को कोई मोल

नहीं होता शुद्ध प्रेम की लीला मे..मगर सूरत को रख सामने,नकली प्रेम को ढोंग रचाया करते है..तभी तो

आज इस युग मे प्रेम का वयापार ना जाने कितने लोग किया करते है..मगर परिशुद्ध प्रेम मे जीने वाले,

दग़ा की बाज़ी सह नहीं पाते...जीते जी मर जाया करते है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...