Sunday 15 March 2020

पत्थरों के शहर है,पत्थरों के दिल है यहाँ..किस को कहे अपना कि हर कोई बेगाना है यहाँ..कही किसी

ने दी चोट तो कही कोई दर्द दे गया..शब्दों को लिखा सीधे-सीधे तो उन को उल्टा पढ़ा गया...गहराई

से बयां किया तो समझ से बाहर हो गया..प्रेम का अर्थ समझाया तो प्रेम होता है क्या ? यह बोल कर

पन्नो से नाम अपना हटा दिया..यहाँ बिकते है लोग दौलत के तराज़ू मे तो प्रेम का मोल कहाँ पता होगा..

तभी तो कहते है,पत्थर लोग-पत्थर दिल..यहाँ हर कोई बेगाना सा है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...