देखा आज परिंदो को संग-संग उड़ते हुए...इक दूजे के लिए,बने इक दूजे के लिए..यह सारा आकाश जो
आशियाना है इन का..यह बहती हवा है जो जीवन है इन का..मर्ज़ी हुई तो रुक दिए,जी किया तो संग उड़
लिए...कल की किसी भी खबर से अनजान,मशगूल है गुफ्तगू मे अपनी..ना कोई वादा फिर भी संग-संग
चल रही साँसे इन की..आ चल हम भी उड़ चले इन परिंदो की तरह..इक दूजे के लिए,बने हम भी इक
दूजे के लिए...
आशियाना है इन का..यह बहती हवा है जो जीवन है इन का..मर्ज़ी हुई तो रुक दिए,जी किया तो संग उड़
लिए...कल की किसी भी खबर से अनजान,मशगूल है गुफ्तगू मे अपनी..ना कोई वादा फिर भी संग-संग
चल रही साँसे इन की..आ चल हम भी उड़ चले इन परिंदो की तरह..इक दूजे के लिए,बने हम भी इक
दूजे के लिए...