Saturday 28 March 2020

मेरे लिखने पे पाबन्दियाँ ना लगा ऐ ज़माने कि मुझे आकाश मे उड़ना है..लफ्ज़ बहुत है पास मेरे,इन

सब को तमाम दुनियाँ मे बिखेर के ही मरना है..श्रेष्ठ अति श्रेष्ट शायरा जो बनना है..तुझे कुछ समझ ना

आए तो मुझे क्या करना है...मन के मैल को साफ़ करे गा तभी तो साफ़ मन से मुझे मेरे लफ्ज़ो को जान

पाए गा..दिल दिमाग को मेरी ज़िंदगी मे उलझाए गा तो ''सरगोशियां'' का वज़ूद कभी ना समझ पाए गा..

एक मामूली सी हस्ती हू,जिस का मकसद पूरा करने मे मेरी मदद कर..क्या औरत हू,इसलिए प्यार पे

लिखना मना है मुझ को..सुन पिछड़े ज़माने,औरत को ना रोक आगे जाने से..पाक साफ़ रख खुद को

तभी तो औरत को उस के हुनर को समझ पाए गा..वरना मेरी ज़िंदगी के ताने-बानो की खबर लेता रह

जाये गा..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...