Friday 27 March 2020

 आ रहा है याद मुझे वो वक़्त,जब तूने मुझे सम्मोहित किया था..वो कौन सी रौशनी थी,जिस ने मुझे

चौंधिया दिया था...कब और कैसे ,तूने मेरी सुध-बुध ग़ुम की..कैसे तेरी बातों ने रचा कौन सा खेल..

बार-बार पलट कर मुझी को देखना..बातें मेरी तस्वीरों से करना..हज़ारो बार मेरी रूह को पुकारना..

मुझी से मुझ को मांग लेना..रातों के सन्नाटे मे मुझे पढ़ना..रातों की मद्धम लो मे मुझ पे बेहिसाब

लिखना..आकाश की बुलंदियों से मुझे पुकारना..हम है धरा के,यह कतई ना मानना..सब आज बहुत

बहुत याद आ रहा है..वक़्त वो मुझे सम्मोहित करने का...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...