मिले तुम से कभी नदिया की धारा पे..मिले तुम से कभी झरनों के द्वारे पे..कभी मिले तुम से फूलों के
बागबानों मे..मिले तो तुम से एक बार ख़यालो के उजालों मे..मिलते रहे जितनी दफा,आँखों मे तुम्हे
भरते रहे..यह बात और है,तुम आँखों से सीधे रूह की गली उतरते रहे .तुम मेरे रोम रोम मे बसे,ईश्वर
का इक रूप लिए..तुम आज हर कण मे हो,मगर उन कणो से दूर,बहुत दूर आज तुम महफूज़ मेरी
पूजा की थाली मे हो...पूजा की थाली मे हो...........
बागबानों मे..मिले तो तुम से एक बार ख़यालो के उजालों मे..मिलते रहे जितनी दफा,आँखों मे तुम्हे
भरते रहे..यह बात और है,तुम आँखों से सीधे रूह की गली उतरते रहे .तुम मेरे रोम रोम मे बसे,ईश्वर
का इक रूप लिए..तुम आज हर कण मे हो,मगर उन कणो से दूर,बहुत दूर आज तुम महफूज़ मेरी
पूजा की थाली मे हो...पूजा की थाली मे हो...........