क्यों कह रही यह सरगोशियां...रंगो को ना मैला करना..रंगो को सिर्फ प्यार मे ही डूबे रहने देना..यह
नीर जो बहुत पावन है,समझो तो इस का रिश्ता प्रेम के साथ बहुत गहरा है..कल-कल करती नदिया
की धारा की तरह,जो बहती भी है तो किसी उन्मुक्त हंसी की तरह..पानी का,इस नीर का कोई रंग नहीं
होता..क्यों कहते है कि प्रेम का भी कोई रंग नहीं होता..रूह अपनी को निभा दे इस नीर मे,रिश्ता तो
खुद ही खुद से पाक हो जाए गा..
नीर जो बहुत पावन है,समझो तो इस का रिश्ता प्रेम के साथ बहुत गहरा है..कल-कल करती नदिया
की धारा की तरह,जो बहती भी है तो किसी उन्मुक्त हंसी की तरह..पानी का,इस नीर का कोई रंग नहीं
होता..क्यों कहते है कि प्रेम का भी कोई रंग नहीं होता..रूह अपनी को निभा दे इस नीर मे,रिश्ता तो
खुद ही खुद से पाक हो जाए गा..