Friday 20 March 2020

वो भी इक शाम थी,यह भी इक शाम है...और इन सब के दरमियाँ वो कौन सा मुकाम है..इंतज़ार कल

भी था,इंतज़ार आज भी है...मिलन की घड़ियां ना आए गी कभी,यह सोच दिल परेशां भी है..क्या कभी

ऐसा होगा कि मेरी यह आंखे बंद होने लगे और तू मुझे मेरे नाम से आवाज़ दे..महक जाए फिर यह हवा.

खिल जाए दुबारा से यह फ़िज़ा..क्यों है उम्मीद तुम बस आवाज़ देने को हो..यह मेरा भरम है या तुम बस

आने को हो...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...