यह बरखा फिर लौट आई है..सपनो को हकीकत मे बदलने के लिए..अपने चेहरे से हटा यह शिकन,
बहार आई है ना लौटने के लिए...यूँ नन्ही नन्ही बातों पे हमीं से खफा होना..मुस्कराहट को रोक लेना
और हमी पे अधिकार जताना..हमारी सफाई सुने बिना,बस खुद ही बोलते जाना..वल्लाह,यह अदा तो
मुझे दीवाना कर छोड़े गी..इस दिल मे कितने तीर दागों गे,कितनी बार इस को घायल करते जाओ गे...
कभी तो इत्मीनान से बात करो,कि यह बरखा फिर लौट आई है..सपनो को हकीकत मे बदलने के लिए..
बहार आई है ना लौटने के लिए...यूँ नन्ही नन्ही बातों पे हमीं से खफा होना..मुस्कराहट को रोक लेना
और हमी पे अधिकार जताना..हमारी सफाई सुने बिना,बस खुद ही बोलते जाना..वल्लाह,यह अदा तो
मुझे दीवाना कर छोड़े गी..इस दिल मे कितने तीर दागों गे,कितनी बार इस को घायल करते जाओ गे...
कभी तो इत्मीनान से बात करो,कि यह बरखा फिर लौट आई है..सपनो को हकीकत मे बदलने के लिए..