Friday, 27 March 2020

बहता रहा जीवन नदिया की धारा की तरह और हम वैसे ही चलते रहे...कहा किनारे-किनारे बसो,हम

वैसे ही बसते रहे..फिर हुआ कुछ ऐसा,हम बगावत पे उतर आए...तोड़ दिए बंधन सारे,अपनी मर्ज़ी के

मालिक हो गए...ज़मीर ने जो कहा,उसी को मानने लगे..कुछ गिला ना अब खुद से है,ना दुनियां वालो

से है..एक कदम जब चलते है तो दूजा भी साथ उठाते है..तक़दीर से अब कोई शिकायत नहीं,खुद से

प्यार है इसलिए खुद की ही सुनते है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...