बहता रहा जीवन नदिया की धारा की तरह और हम वैसे ही चलते रहे...कहा किनारे-किनारे बसो,हम
वैसे ही बसते रहे..फिर हुआ कुछ ऐसा,हम बगावत पे उतर आए...तोड़ दिए बंधन सारे,अपनी मर्ज़ी के
मालिक हो गए...ज़मीर ने जो कहा,उसी को मानने लगे..कुछ गिला ना अब खुद से है,ना दुनियां वालो
से है..एक कदम जब चलते है तो दूजा भी साथ उठाते है..तक़दीर से अब कोई शिकायत नहीं,खुद से
प्यार है इसलिए खुद की ही सुनते है..
वैसे ही बसते रहे..फिर हुआ कुछ ऐसा,हम बगावत पे उतर आए...तोड़ दिए बंधन सारे,अपनी मर्ज़ी के
मालिक हो गए...ज़मीर ने जो कहा,उसी को मानने लगे..कुछ गिला ना अब खुद से है,ना दुनियां वालो
से है..एक कदम जब चलते है तो दूजा भी साथ उठाते है..तक़दीर से अब कोई शिकायत नहीं,खुद से
प्यार है इसलिए खुद की ही सुनते है..