मंज़िल वही रास्ता भी वही,मगर पाँव उठते क्यों नहीं...सोचते है बहुत बार,कही कोई कमी हमीं मे तो
नहीं...हज़ारो फूल बिख़र रहे है आज हमारी राहो मे,मगर देखना तक जरुरी समझा ही नहीं..यह कौन
सी दस्तक है जिस को सुनना आदत मे कही शामिल ही नहीं..बस तू साथ था,साथ है सदियों से...इस से
जयदा और कुछ माँगा भी नहीं...बेतरबी से बिखरे गेसू बस तू ही सँवारे,मेरी मुहब्बत के लिए बस इतना
करे..यह मेरी तक़दीर की रोशनाई ही सही...
नहीं...हज़ारो फूल बिख़र रहे है आज हमारी राहो मे,मगर देखना तक जरुरी समझा ही नहीं..यह कौन
सी दस्तक है जिस को सुनना आदत मे कही शामिल ही नहीं..बस तू साथ था,साथ है सदियों से...इस से
जयदा और कुछ माँगा भी नहीं...बेतरबी से बिखरे गेसू बस तू ही सँवारे,मेरी मुहब्बत के लिए बस इतना
करे..यह मेरी तक़दीर की रोशनाई ही सही...