Friday 13 March 2020

मंज़िल वही रास्ता भी वही,मगर पाँव उठते क्यों नहीं...सोचते है बहुत बार,कही कोई कमी हमीं मे तो

नहीं...हज़ारो फूल बिख़र रहे है आज हमारी राहो मे,मगर देखना तक जरुरी समझा ही नहीं..यह कौन

सी दस्तक है जिस को सुनना आदत मे कही शामिल ही नहीं..बस तू साथ था,साथ है सदियों से...इस से

जयदा और कुछ माँगा भी नहीं...बेतरबी से बिखरे गेसू बस तू ही सँवारे,मेरी मुहब्बत के लिए बस इतना

करे..यह मेरी तक़दीर की रोशनाई ही सही...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...