Thursday, 12 March 2020

बरखा गई,मौसम सर्द भी गया...यह भीगा भीगा मौसम क्यों शोख़िया कर रहा...रात की आहट पाते ही

सूरज क्यों छुप जाता है..नज़र ना लगे ज़माने को,जाते जाते गहरा काला टीका लगा जाता है..तब यह

चाँद शरमा कर जग को उजाला देता है..इतने उजाले मे क्यों हम को अपना चाँद नज़र नहीं आता है..

अब ढूंढे उजाला कौन सा ऐसा जो चाँद हमारा आ जाए..भर दे झोली जो प्यार से और सवेरा लहराए..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...