Monday 9 March 2020

वो प्रेम-रास की राधाकृष्ण की होली थी..इतनी शुद्ध जितनी पावन राधा की बोली थी..जो कृष्णा के

मन की बात जान लेती,जो उसी के हर रंग मे रंग जाती..विश्वास था इतना गहरा अपने कान्हा पे,कि

हर पल अपना उसी को अर्पण कर देती..कृष्ण हुए सिर्फ उसी के,यह कहानी प्रेम रास को सिद्ध कर

जाती..आज के युग मे क्या राधा होगी ऐसी,गर होगी तो क्या कृष्णा उतने ही त्यागी होंगे..सवाल तो आज

भी सवाल है..क्या प्यार इस युग का ऐसा ''बेमिसाल'' है ?

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...