Tuesday 31 March 2020

वादों का क्या है यह तो अक्सर ही टूट जाया करते है..वैसे ही जैसे जिस्म से रूह निकल जाया करती है..

साँसों को रुकने के लिए कहे कैसे...यह सूनी-सूनी है बिन दिल के जैसे...आंखे पथरा जाए गी किसी दिन

किसी पत्थर के बुत के जैसे..यह बेजान जिस्म ना करे गा कोई शिकायत,रूह भी इस को छोड़ जाए गी

बिलकुल वैसे...जैसे समंदर अपने दिल से निकाल फैकता है वो मोती,जो उस के काम के नहीं होते...

बस वही रहते है समंदर की तह मे,जो कठोर और नकली होते है पत्थर जैसे...नरम मासूम दिल अक्सर

टूट के भटका करते है और कभी-कभी किसी के पैरो तले कुचल भी जाया करते है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...